tag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post5063131660584349724..comments2023-06-07T05:50:29.305-07:00Comments on बेदखल की डायरी: एक आत्मस्वीकारोक्ति के बहाने कुछ सवाल–2मनीषा पांडेhttp://www.blogger.com/profile/01771275949371202944noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-26856320890963060712009-10-04T14:40:17.598-07:002009-10-04T14:40:17.598-07:00bahut hi rochak hai.. abhi tak soch raha hun vyang...bahut hi rochak hai.. abhi tak soch raha hun vyangya hai ya sweekarokti.. agli kadi ka intazaar hai...Ambarishhttps://www.blogger.com/profile/10523604043159745100noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-86035635437382386472009-10-04T10:43:56.907-07:002009-10-04T10:43:56.907-07:00भाई अब सिगरेट को प्रगतिशीलता को गरियाने का बहाना म...भाई अब सिगरेट को प्रगतिशीलता को गरियाने का बहाना मत बनाईये प्लीज़.<br />मैने जितना प्रगतिशीलों के साथ पीया है उससे कई गुना दूसरों के साथ. <br />गाँवों में तमाम बूढी महिलाओं के साथ बीडी सुलगायी है, बाबा लोग के साथ चिलम और आम दोस्तों के पूरे परिवार के साथ शराब.<br />आप ने ही लिखा की दफ्तर में सिगरेट सुलगाते शर्म आती थी तो फिर यह प्रगतिशीलता के प्रदर्शन का आधार कैसे बन गया. अगर सिर्फ प्रगतिशीलों के भरोषे बिक रही होती सिगरेट तो अब तक तमाम पत्रिकाओं की तरह यह भी बंद हो गयी होती.. तो तमाम दूसरी चीजों की तरह यह भी आदत है...और छूट गयी तो अच्छा. हद से हद यह व्यक्तिगत स्तर पर अतार्किकता का प्रमाण है...उतना जितना अपने पर्सनल स्पेस के भीतर ही है.Ashok Kumar pandeyhttps://www.blogger.com/profile/12221654927695297650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-24151199490763359462009-10-04T03:23:51.645-07:002009-10-04T03:23:51.645-07:00शुक्रिया पूजा। आप सभी की हौसलाअफजाई के लिए बहुत बह...शुक्रिया पूजा। आप सभी की हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। प्रियंकर जी और अनिल जी, आपके सुझाव पर गौर करूंगी। और बाल-गोपालों की अंडरवियर मैं क्यों धोऊंगी भला<br />, मेरा पति धोएगा ना। अब वो इतना भी न कर सके तो इस धरती पर उसका अस्तित्व बेकार है।मनीषा पांडेhttps://www.blogger.com/profile/01771275949371202944noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-45825579635893798032009-10-04T02:08:11.278-07:002009-10-04T02:08:11.278-07:00मनीषा, अचानक तुम्हारा ब्लॉग क्लिक किया और देखा कि ...मनीषा, अचानक तुम्हारा ब्लॉग क्लिक किया और देखा कि लंबे अरसे बाद तुम ब्लॉग की दुनिया में फिर हो। अच्छा लगा. और तीनों ही पोस्ट्स धड़ाधड़ पढ़ गई, ठीक उसी लय में जैसे तुम लिखती हो, सुजाता ने सही लिखा है, बहता सा लेखन..गुड.Pooja Prasadhttps://www.blogger.com/profile/06905471603653467131noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-27686926733029895182009-10-03T11:11:28.383-07:002009-10-03T11:11:28.383-07:00ओह! प्रियंकर ने ठीक ही कहा। शादी कर लो और ये नकली...ओह! प्रियंकर ने ठीक ही कहा। शादी कर लो और ये नकली प्रगतिशीलता छोड़ो। भोपाल छोड़कर कुछ बाल-गोपाल में मन लगाओ। भजन गाओ। पति के नहीं तो बाल-गोपालों के अंडरवियर तो धोने ही पड़ेंगे।अनिल जनविजयhttps://www.blogger.com/profile/02273530034339823747noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-59543671313912631702009-10-03T05:15:20.117-07:002009-10-03T05:15:20.117-07:00अच्छा है, पूरा लिख ही डालिये मन का..इन्तजार करते ह...अच्छा है, पूरा लिख ही डालिये मन का..इन्तजार करते हैं अगली कड़ी का.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-48505382514591512202009-10-03T04:45:31.143-07:002009-10-03T04:45:31.143-07:00हुम्म,
मैं सोच रहा हं।
अंडरवियर तो पतियों ...हुम्म, <br /><br /><br /><br />मैं सोच रहा हं। <br /><br /><br />अंडरवियर तो पतियों को खुद ही धोनी चाहिए :)Astrologer Sidharthhttps://www.blogger.com/profile/04635473785714312107noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-39452433387148529772009-10-03T04:05:24.800-07:002009-10-03T04:05:24.800-07:00महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर गम्भीर चिंतन।
Think Scienti...महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर गम्भीर चिंतन।<br /><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">Think Scientific </a><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">Act Scientific </a>Arshia Alihttps://www.blogger.com/profile/14818017885986099482noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-44327221388971005852009-10-03T00:22:34.883-07:002009-10-03T00:22:34.883-07:00’सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकरक है’यह संदेश...’सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकरक है’यह संदेश सिर्फ़ पुरुषों के लिये नहीं है . तब भी लोग पीते तो हैं ही . सो तुमने भी वर्जना की एक रेखा लांघी . शायद वर्जना थी इसीलिए लांघी .<br /><br />सिगरेट पीना शुरू किया तो कोई बड़ा पाप नहीं हो गया सो ऐसा कोई अपराधबोध भी नहीं होना चाहिए . पर छोड़ दिया तो यह हुई साहस की बात . अपने स्वास्थ्य के प्रति और अपने मित्र-परिजनों के प्रति एक किस्म की जिम्मेदारी के भाव का उदय . एक खास किस्म की समझदारी का भी जन्म जिसमें प्रगतिशीलता और नारी-मुक्ति के ये दृश्य बिम्ब अपनी चमक ,अपना महत्व खो देते हैं और नर-नारी समता का वैचारिक आधार ही असली कसौटी रह जाता है .<br /><br />स्त्री-पुरुष समता का सपना हम सब सच होते देखना चाहते हैं . उस तरफ़ आगे बढे भी हैं . पर बहुत कुछ होना बाकी है . लेकिन अगर स्त्री पुरुष होने की ओर -- उतनी ही असंवेदनशील, ढोंगी, चालबाज और दुनियादार होने की ओर (और नशेड़ी भी)-- तो इसे दुर्भाग्य ही मानना चाहिये . <br /><br />बोहेमियन जिंदगी जीकर पुरुष ने ही क्या पा लिया ? अनेक नष्ट प्रतिभाओं के उदाहरण सामने हैं. सामान्य अनुशासन के सहारे भी कितने सामान्य लोग क्या कुछ नहीं कर गये . इसलिये कभी-कभी बोहेमियन प्रवृत्ति को थोड़ी ढील देने के बावजूद बोहेमियन होना एक किस्म का दुस्साहस ही है,स्त्री के लिये तो और भी . यह एक किस्म आत्मघात है जो हम किस्तों में करते हैं .<br /><br />बिना किसी विशेषज्ञता का दावा किये,अपने सामान्य प्रेक्षण से मेरा अनुभव यह रहा है कि किशोरावस्था में सिगरेट-शराब के पीछे मित्र समूह में स्वीकरण-अस्वीकरण का भाव और थोड़ा एडवेंचर की ओर सहज झुकाव काम करता है .<br /><br />परिपक्व अवस्था में इसके दो रूप दिखते हैं : एक तो अकेलेपन का अवसाद -- एक किस्म के खालीपन को भरने की इच्छा -- जिसके लिये कई-कई तर्क गढ़े जाते हैं,कन्सन्ट्रेशन,क्रिएटिवनेस से लेकर कब्ज तक . <br /><br />दूसरा अभिन्न-प्रगाढ़ मित्रों के मिलने-इकट्ठा होने पर छठे-छमासे छोटे-मोटे मिलनोत्सव जो एक स्तर पर छोटी-मोटी नेटवर्किंग का भी अवसर प्रदान करते हैं . सिर्फ़ नेटवर्किंग के ही लिये ही की गई व्यावसायिक पार्टियों की तो बात ही और है .<br /><br />ईमानदारी और आधुनिकता बड़े मूल्य हैं,अत्यंत वरेण्य मूल्य . पर इनका दम्भ इन मूल्यों के गुरुत्व-केन्द्र को हिला देता है . ईमानदार दिखने वाले वक्तव्य अक्सर अपना अर्थ खो देते हैं . बिल्कुल ठीक बात है कि ’लज्जा (हमेशा)स्त्री का गहना नहीं है’ पर निर्लज्जता भी उसका कंठहार नहीं हो सकता . ईमानदार और स्पष्टवादी होना निर्लज्ज होना नहीं है . ’लड़कियां इस धरती पर पति का अंडरवियर धोने के लिए नहीं पैदा हुईं’हैं और न ही पति से पैंटीज़ धुलवाने के लिये . दोनों ही छोटे-बड़े सार्थक काम करने के लिये बने हैं . बशर्ते एक-दूसरे के सहयोग से कर पाएं तो . सहयोगिता और सम्पूरकता के अलावा और कोई रास्ता है हमारे पास ?<br /><br />कुछ दिन सिगरेट पी,कोई बात नहीं . छोड़ दी !बहुत अच्छी बात . यह विल पावर अब अन्य जगह भी दिखनी चाहिये -- लिखने-पढने में . मस्त रहो,मित्र बनाओ और खूब आनन्द करो . आनन्द यानी ’बिनाइन प्लैज़र’, न कि ’बेसर प्लैज़र’.<br /><br />और अन्त में अयाचित;कदाचित अनुचित सलाह कि अच्छा-सा लड़का देख कर शादी कर लो . तुम्हारे जैसी अच्छी-ईमानदार लड़की को जीवन सम्पूर्णता में जीना चाहिये . <br /><br />क्या यह मेरा पुनर्मूषिकत्व को प्राप्त होना है ? अब हो तो हो .Priyankarhttps://www.blogger.com/profile/13984252244243621337noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-37779414913163787642009-10-03T00:06:00.542-07:002009-10-03T00:06:00.542-07:00पता नहीं लज्जा जैसे कितने गहने हिन्दुस्तानी लड़की ...पता नहीं लज्जा जैसे कितने गहने हिन्दुस्तानी लड़की के लिए रिज़र्व है ...जैसे वक़्त के साथ कुछ टारगेट फिक्स होते है .. होते है ...ओर सबसे बड़ा टारगेट होता है "विदाई "....किबला पान मसाला मुंह में ठूसे मियां जी .मंजूर है पर सिगरेट फूंकती बाला .....हाय राम...<b>हमारे कॉलेज में एक सरदारनी हुआ करती थी ..कभी कभी हमारे से एक कश मार लिया करती थी .बोलते हुए "या रब मेरे गुनाहों को माफ़ करना ....पर इस धुंए में बड़ी अजीब सी कशिश है .....इमरजेंसी की रातो में कभी बाहर चाय की लारी पे मिल जाती .तो बोलता सुट्टा सुलगा...कुछ धुंया अन्दर खीच लूं फेफडो में ...पर उसे ज्यादा कर्मठ ओर लगन वाली बंदी मैंने आज तक नहीं देखी.....पेशेंट अगर सीरियस है तो मजाल जो वहां से हिल जाये .दूसरे डिपार्टमेंट से पंगा ले लेती गलत बात पे ......ओर मंगल के व्रत रखने वाली मोह्तारमाये इमरजेंसी में ऊँघ रही होती </b> अब तो खैर हम भी सिगरेट रेलिश नहीं करते ..गाहे बगाहे पुराने यारो में आधी आधी बाँट लेते है ..पर आपको कल पढ़ा तो वो याद आयी...अब तो वो ऑस्ट्रेलिया में है ....डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-72983436973272494382009-10-02T19:52:18.427-07:002009-10-02T19:52:18.427-07:00ओह !ओह !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-67601878243456376892009-10-02T19:37:22.034-07:002009-10-02T19:37:22.034-07:00मनीषा जी,
एक आग्रह मेरा है! आपकी लेखनी और समझ-बूझ...मनीषा जी,<br /><br />एक आग्रह मेरा है! आपकी लेखनी और समझ-बूझ की तारीफ करना कोई नई बात नहीं होगी लेकिन मेरा आग्रह ये कि अब आप इस आदत पर कुछ भी न लिखें और ऐसा कुछ लिखें जिससे फूल खिलें। आग्रह करने का हक तो मुझे होगा ही !Prakash Badalhttps://www.blogger.com/profile/04530642353450506019noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-5636012475746829132009-10-02T19:27:10.077-07:002009-10-02T19:27:10.077-07:00सिगरेट पीना छोड़ दिया,ओह..अच्छी भली लड़की प्रगतिशी...सिगरेट पीना छोड़ दिया,ओह..अच्छी भली लड़की प्रगतिशील होती जा रही थी,विकासक्रम ही रुक गया। अब ढूंढ़ो जरा कोई दूसरा उपाय जिससे प्रगतिशील होना बना रहे। रात में खुद की आंखों में लाल डोरे देखने का शौक है या नहीं।..विनीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-61024310971358452442009-10-02T19:24:28.778-07:002009-10-02T19:24:28.778-07:00रोचक है यह पढ़ना। सुन्दर,कसा लेख। आगे की कड़ी का इंत...रोचक है यह पढ़ना। सुन्दर,कसा लेख। आगे की कड़ी का इंतजार है।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-83529787765841554842009-10-02T18:35:54.002-07:002009-10-02T18:35:54.002-07:00खुद के गढ़े तर्क के आधार अपनी बुरी आदतों का समर्थन...खुद के गढ़े तर्क के आधार अपनी बुरी आदतों का समर्थन और फिर उसकी सच्ची आत्म-स्वीकृति - सचमुच सराहनीय है। नित्य अच्छाई की ओर बढ़ते कदम का स्वागत होना ही चाहिए। शुभकामना।<br /><br />सादर<br />श्यामल सुमन<br />www.manoramsuman.blogspot.comश्यामल सुमनhttps://www.blogger.com/profile/15174931983584019082noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-15918339208725643112009-10-02T18:16:44.121-07:002009-10-02T18:16:44.121-07:00अब जब इतना बता ही दिए हैं तो आदत की शुरुआत और इसके...अब जब इतना बता ही दिए हैं तो आदत की शुरुआत और इसके लत में बदलने का किस्सा भी बताइए न. ये न कहियेगा कि पाठक रस लेने लगे हैं. हर फ़िक्र को धुएँ में (न) उड़ाकर लिखती रहें.<br /><br />"जो लड़कियां इस धरती पर पति का अंडरवियर धोने के लिए नहीं पैदा हुईं, जिन्हें कुछ महान रचकर दुनिया को दिखा देना है, वो सिगरेट भी न पिएं तो क्या भजन गाएं।"<br /><br />ह्म्म्म... कुछ सोच रहा हूँ!:)निशांत मिश्र - Nishant Mishrahttps://www.blogger.com/profile/08126146331802512127noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-5132921419925922102009-10-02T16:53:57.400-07:002009-10-02T16:53:57.400-07:00"मेरे अंदर तो काठ का उल्लू और मॉडर्न, फैशनेब..."मेरे अंदर तो काठ का उल्लू और मॉडर्न, फैशनेबुल, अत्याधुनिक प्रगतिशीलता का दुपट्टा वाली लड़की बैठी थी। उसकी आधुनिकता अगर रामदेव के कब्ज निवारक चूर्ण के सामने झुक जाए तो लानत है ऐसी आधुनिकता पर।"<br />आत्मस्वीकारोक्ति के ये अल्फ़ाज आधुनिकता के मापदण्डो पर अनेक सवाल खडे कर रहे है.M VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-45088854661065979912009-10-02T13:36:24.188-07:002009-10-02T13:36:24.188-07:00दिलचस्प !
आगे की बात का इंतज़ार रहेगादिलचस्प ! <br /><br />आगे की बात का इंतज़ार रहेगाroushanhttps://www.blogger.com/profile/18259460415716394368noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4012272906206136067.post-7282372315665441022009-10-02T13:04:57.690-07:002009-10-02T13:04:57.690-07:00अपने बहाने अच्छा व्यंग्य है।अपने बहाने अच्छा व्यंग्य है।दिनेशराय द्विवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00350808140545937113noreply@blogger.com