तीन बजे के आसपास मैंने कुछ देर सोने की सोची और वहीं किताबों के ढेर के बीच जमीन पर ही दो तकिया डाल दोहर ओढ़कर ठंडी फर्श पर पसर गई। मोबाइल में चार बजे का अलार्म था। दिन खराब नहीं होने दूंगी। उठकर उस संसार में वापस लौटना है, जहां मुझे लगता है कि मेरा सबसे ज्यादा मन लगता है।
एक घंटे की उस नींद पर पूरा एक उपन्यास लिखा जा सकता है। जाने किन किन ठिकानों पर हो आई। कहां-कहां भटकी। मैंने देखा कि मैं खेत और कब्रिस्तान जैसी दिखती किसी जगह पर हूं। वहां मैं इंगमार बर्गमैन से मिली। वह मेरी भाषा नहीं बोल रहे थे लेकिन मुझे ऐसा भी नहीं लगा कि उसकी भाषा मुझे समझ में नहीं आ रही। फिर अचानक कहीं से लिव उलमैन आ गई। बोली, मैं बर्गमैन की नई फिल्म में काम कर रही हूं लेकिन तुम यहां पर क्या कर रही हो। बर्गमैन ने मेरा हाथ पकड़कर रोका और कहा कि मैं तुम्हें अपना कमरा दिखाता हूं। लेकिन कमरा कहीं खो गया। बस मेरे हथेलियों में बर्गमैन की पकड़ बची रह गई। फिर मैंने देखा कि मेरी मां अस्पताल में हैं। वहां मैंने कपड़े सुखाने वाली एक डोरी बांध रखी है और उस पर कुछ अजीब अजीब आकार के कपड़े सूख रहे हैं। वो अस्पताल कुछ कुछ रेलवे स्टेशन जैसा दिख रहा था। बहुत साफ सुथरा था, लेकिन वहां टे्न और यात्री आ-जा रहे थे। मेरे पास एक ऊंची टेबल थी जो अस्पताल का कोई कर्मचारी मुझसे हड़पना चाहता था और मैं नहीं दे रही थी। फिर वहां किसी डॉक्टर से मेरा झगड़ा हो गया। मैंने बर्गमैन को आवाज दी। मां ने कहा अपने पति को बुलाओ। पति तो है ही नहीं। लेकिन सपने में वो भी कहीं से नमूदार हुआ। याद नहीं वो कैसा था। मैं बर्गमैन का हाथ पकड़कर भाग जाना चाहती थी। अस्पताल में टे्न आ रही थी। चारों तरफ बहुत शोर हो रहा था।
तभी अलार्म बजा और मेरी नींद खुल गई।
उस एक घंटे में ही बीच में एक एसएमएस आया था और उस एसएमएस की टोन को मैंने अलार्म समझकर बंद किया था और फिर सो गई थी। नींद में ही मेरे दिमाग में यह भी चल रहा था कि चार बजे का अलार्म तो कब का बज चुका, मैं फिर भी सोए जा रही हूं। लग रहा है यह नींद कभी खत्म नहीं होगी। जाने कितना समय गुजरता जा रहा है और मेरी आंख नहीं खुल रही। मैंने सीन्स फ्रॉम ए मैरिज की मैरिएन से लौटकर आने को कहा था। अब शायद मैं कभी सीन्स फ्रॉम ए मैरिज दोबारा नहीं पढ़ पाऊंगी।
और तभी वह अलार्म बज गया। चार बज रहे हैं। दो टोमैटो सैंडविच कब के पच चुके। मैं कुछ खाना चाहती हूं, लेकिन कुछ बनाना नहीं चाहती। सिर्फ एक कप कड़क ब्लैक कॉफी के साथ यह पोस्ट लिख रही हूं।
24 comments:
कितनी विविधता हो चली है हिन्दी ब्लॉग लेखन में -यह भी ब्लॉग लेखन की एक स्टाईल है बिलकुल निजी डायरी मानिंद मगर पैराडाईम शिफ्ट यह की यह सार्वजनिक है -काफी दिन बाद आयीं इसलिए स्वागत भी होना चाहिए -स्वागतम ! माडरेशन आन करेगीं या ऐसे ही छोडेगी -अनाम ब्लॉग बुभुक्षुओं के रहमो करम पर !
मॉडरेशन ऑन है अरविंद जी।
चलिए एक लंबे समय के बाद सही लेकिन आपको खामोशी टूटी तो सही।
छुट्टी का दिन, दिन में नींद और दिन के सपने।
यह सब एक लम्बे समय के बाद ही मयस्सर होते हैं। चलिए आपने इन सबका लुत्फ ले लिया।
मगर छुट्टी का दिन तो हर हफ्ते आता होगा न, फिर ब्लॉग से ऐसी दूरी क्यों?
चलिए आशा है अब लगातार दिखते रहेंगी आप अपने ब्लॉग पर
ब्लाग में ब्लैक कॉफी की ताजगी अब अनवरत रहे.
आईये आईये..हमें भी कॉफी पिलाईये तो आँख खुले और आपका स्वागत करें.
पूरा सपना याद रहा बस वो भूल गईं जो याद रखना था:
याद नहीं वो कैसा था। :)
नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएँ.
अच्छा और नया तरीका.. ताजगी; लिखती रहें.
बहुत निजी और बहुत सुंदर।
देर से ही सही, आपने ख़ामोशी को तोड़ा तो सही ! आगे यह ख़ामोशी लम्बी न हो, ख़याल रखें। यह बेदख़ल की डायरी है, गाहे-बगाहे कुछ कुछ अंतराल पर कुछ न कुछ लिखें और ब्लॉग की दुनिया के लोगों से शेयर करती रहें !
सुभाष नीरव
www.kathapunjab.blogspot.com
सपानबयानी..:)
अभय, सपानबयानी क्या हुआ? सपाटबयानी तो नहीं?
मज़ेदार बात तो यह है कि जब पति है ही नहीं तो वह नमूदार कहाँ से हुआ? चलिए अब इस बहाने मनीषा जी की उनसे मुलाकात भी हो गई।
बेचारा बर्गमैन तो अब कड़वी कॉफ़ी के लायक भी नहीं रह गया।
भले ही आप मुझसे सीनियर हों लेकिन अब मैं आपका स्वागत कर सकता हूं।
स्वागत है मनीषा जी पुन: प्रवेश पर। अब नियमित लिखेंगी तो कुछ नया पढ़ने को मिलता रहेगा।
yah jindagi bhi ek sapne ki tarah hai par ise manage kar real life me utara jaye to puri duniya aur puri Jindagi Bahut sundar Lagne lagegi. Jab kabhi Khamoshi aa jaye to apne aap se bate karke use todne ka pryash karna chahie. But yore blog is great.
स्वागत है...बेहद लंबे समय बाद वापसी होने पर। थक गया था आपका ब्लॉग देखते देखते कि कभी तो नई पोस्ट आएगी लेकिन अभी सुबह आपका ईमेल देखा कि नई पोस्ट लिखी है, सारे काम छोड़कर इसे पढ़ा और टिप्पणी स्वागत की। निरंतर रहिए...दशहरा की शुभकामनाओं के साथ।
शायद अभय ने सपनबाणी लिखा, आप जो सपना देख रहे थे। बहुत खूबसूरत है, देर आए दुरुस्त आए। कमाल की पोस्ट थी।
भावुक सुन्दर सपना।
sapane ke bahar to aayin! jaldi se kuch yatharth likhiye.
बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग को पढ़कर अच्छा लगा।
sundar...antarang...bergman itne pasand hain aapko,hairani bhri khushi hoti hai...unse apna bhi lagaw hai....bahrahal...lambe arse tk yahan se gol rahin,yh logon k comments se maine jana...wapsi bhi lambi khichni chahiye...shubhkamnayen...
वापसी की तो बर्गमैन के साथ ।
सई है । अब ज़रा 'कुंभकरणी-नींद' को तोड़कर आंखें मलो और अपनी प्रोफाइल को सुधार लो । इंदौर में दस महीने से हो या दसियों महीने पहले छोड़ चुकीं । मैं तो अभी अभी इंदौर से ही लौट रहा हूं ।
अगली पोस्ट के लिए कित्ते महीने बाद लौटें बता देना एस एम एस करके
चलो , दिखीं तो सही , आँखें थक गयी थीं ...एक साल पुरानी पोस्ट देख देख के :) स्वागत !
आपका पुनः स्वागत है....मैं आपकी लिखी हुई पहले की पोस्ट कई बार पढ़ चूका हूँ....मुझे बहुत अच्छा लगता है आपको पढना...आप इसी तरह लिखती रहें...कम से कम आपका लिखा और अधिक पढने को तो मिलता रहेगा
स्वागत है! निरंतरता बनी रहे!
kisi sapne ko dekhana hamari kalpanasheelata ki gahrai ko to batata hi hai lekin tumhara yahn sapna jane kyun aisa ki tumhare sapno aur usaki rooprekha ko bhi bata pa raha hai.
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