इस कहानी में सिर्फ नाम और पहचान बदल दी गई है। बाकी एक-एक बात बिलकुल सच है।
एक डच महिला के साथ महान गौरवशाली संस्कृति वाले हमारे देश में गैंग रेप हुआ। देश की राजधानी की एक एम्बैसी में उसके केस की सुनवाई चल रही थी। वकील ने लड़की से पूछा, "क्या आप गैंग रेप करने वाले लोगों को आइडेंटीफाई कर सकती हैं।"
लड़की बोली, "नहीं।"
"क्यों?"
लड़की की Eye Side कमजोर थी। वह चश्मा लगाती थी। उन लोगों ने उसका चश्मा तोड़ डाला था। चारों तरफ अंधेरा था। रात का समय। वह नहीं पहचान पार्इ। लेकिन उस लड़की ने एक बात और कही थी। वह बोली,
"नहीं। मैं उन्हें आइडेंटीफाई नहीं कर सकती। मैंने उन्हें नहीं देखा। उस वक्त मैंने अपनी आंखें बंद कर ली थीं और सोच रही थी कि मैं नीदरलैंड में हूं। उस वक्त मैं उस क्षण के बारे में नहीं सोचना चाहती थी। मैं ये कल्पना कर रही थी कि मैं वहां हूं ही नहीं। मैं अपने देश में हूं। अपने घर में। अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ।"
................
फिल्म बैंडिट क्वीन का एक दृश्य है, जब बहमई के ठाकुर अपनी मर्दाना एकता के साथ इकट्ठे हुए हैं एक औरत को उसकी औकात बताने के लिए। जबर्दस्ती फूलन देवी के साथ हिंसक सामूहिक बलात्कार करने के लिए। जब एक-एक करके वह उस झोपड़ी में जा रहे हैं और आ रहे हैं, उस वक्त एक धुंधला सा आकार दिखता है। फूलन देखती है कि विक्रम मल्लाह उसके सिरहाने खड़ा है। वह उसका हाथ थाम रहा है, उसके सिर पर हाथ फेर रहा है, उसका माथा चूम रहा है। एक-एक करके ठाकुर आ रहे हैं और जा रहे हैं। सब साबित कर रहे हैं कि वे मर्द है और जब चाहें, जैसे चाहें, जहां चाहें, औरत को उसकी दो कौड़ी की औकात बता सकते हैं। उस समय, उस सबसे यातना भरे समय में फूलन उस आदमी के बारे में सोच रही है, जिससे उसे जिंदगी में प्यार और इज्जत मिली थी। असल में तो विक्रम मल्लाह वहां है ही नहीं। वह मर चुका है। यह सिर्फ फूलन की कल्पना है।
.................
क्या ये अजीब है कि दोनों औरतों की कल्पना में इतना साम्य है। दोनों अपने जीवन के सबसे दुखद क्षण में सबसे सुंदर क्षण के बारे में सोच रही हैं। जीवन जब सबसे गहरी पीड़ा से गुजर रहा है, मुहब्बत भरा एक हाथ उन्हीं के हाथ को कसकर थामे हुए है।
लेकिन मैंने ये बताने के लिए ये दोनों कहानियां नहीं सुनाईं कि जिंदगी हर क्षण उम्मीद है। कि सामूहिक बलात्कार के समय एक औरत अपनी आंखें बंद करके सोचती है कि उसे प्रेम करने वाले पुरुष ने उसका हाथ कसकर थाम रखा है। वह सोचती है कि वह दरअसल वहां है ही नहीं। वह सोचती है कि सब पहले की तरह सुंदर है। ये तो मैं जानती ही हूं। मैं भी तो एक औरत हूं।
मैं बताना दरअसल कुछ और चाहती हूं।
उस दिन दिल्ली की एम्बैसी में जब उस डच लड़की ने यह बयान दिया तो वहां मौजूद वकील, जिसकी निगाहें अब तक उस डच औरत की छातियों पर गड़ी हुई थीं, को हंसी आ गई। उसने बहुत घूरती, अश्लील नजर से उसे देखा और बोला, "ये कैसे हो सकता है मैडम कि आपने उन्हें देखा ही न हो। आइडेंटीफाई किए बगैर केस कमजोर हो जाएगा। पहचान तो करनी पड़ेगी।" फिर वह धीरे से अपने कुलीग से बोला, "आंखें बंद करके मजे ले रही थी।" वकील साहब इतने से नहीं माने। बाद में बाहर निकलकर ट्रांसलेटर लड़की से बोले, “अरे मैडम, इन लोगों से बात मत करिए। ये विदेशी औरतें बहुत गंदी होती हैं। इनका क्या, ये तो किसी के भी साथ सो जाती हैं।” और सिर्फ वह वकील ही क्यों, उस केस की वकालत कर रहे और उस वक्त कोर्टरूम में मौजूद सारे मर्दों को उस लड़की के बयान पर हंसी ही आई थी। जो लोग कनखियों से उसकी छातियों का एक्सरे निकाल रहे थे, वही उस दिन उसे न्याय दिलाने के लिए वहां बैठे थे।
कोर्ट रूम में उस डच लड़की को समझ में नहीं आया कि हिंदी में कहा क्या गया था। वहां मौजूद ट्रांसलेटर ने उस वाक्य का कभी अनुवाद नहीं किया। और मुझे शक है कि उस डच लड़की का वह बयान भी दर्ज नहीं किया गया था। "क्या आप आइडेंटीफाई कर सकती हैं?" के जवाब में उन्होंने बस इतना ही लिखा होगा, "नहीं।"
मैं कभी आरटीआई लगाकर उस दर्ज बयान की कॉपी जरूर निकलवाऊंगी।
एक डच महिला के साथ महान गौरवशाली संस्कृति वाले हमारे देश में गैंग रेप हुआ। देश की राजधानी की एक एम्बैसी में उसके केस की सुनवाई चल रही थी। वकील ने लड़की से पूछा, "क्या आप गैंग रेप करने वाले लोगों को आइडेंटीफाई कर सकती हैं।"
लड़की बोली, "नहीं।"
"क्यों?"
लड़की की Eye Side कमजोर थी। वह चश्मा लगाती थी। उन लोगों ने उसका चश्मा तोड़ डाला था। चारों तरफ अंधेरा था। रात का समय। वह नहीं पहचान पार्इ। लेकिन उस लड़की ने एक बात और कही थी। वह बोली,
"नहीं। मैं उन्हें आइडेंटीफाई नहीं कर सकती। मैंने उन्हें नहीं देखा। उस वक्त मैंने अपनी आंखें बंद कर ली थीं और सोच रही थी कि मैं नीदरलैंड में हूं। उस वक्त मैं उस क्षण के बारे में नहीं सोचना चाहती थी। मैं ये कल्पना कर रही थी कि मैं वहां हूं ही नहीं। मैं अपने देश में हूं। अपने घर में। अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ।"
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फिल्म बैंडिट क्वीन का एक दृश्य है, जब बहमई के ठाकुर अपनी मर्दाना एकता के साथ इकट्ठे हुए हैं एक औरत को उसकी औकात बताने के लिए। जबर्दस्ती फूलन देवी के साथ हिंसक सामूहिक बलात्कार करने के लिए। जब एक-एक करके वह उस झोपड़ी में जा रहे हैं और आ रहे हैं, उस वक्त एक धुंधला सा आकार दिखता है। फूलन देखती है कि विक्रम मल्लाह उसके सिरहाने खड़ा है। वह उसका हाथ थाम रहा है, उसके सिर पर हाथ फेर रहा है, उसका माथा चूम रहा है। एक-एक करके ठाकुर आ रहे हैं और जा रहे हैं। सब साबित कर रहे हैं कि वे मर्द है और जब चाहें, जैसे चाहें, जहां चाहें, औरत को उसकी दो कौड़ी की औकात बता सकते हैं। उस समय, उस सबसे यातना भरे समय में फूलन उस आदमी के बारे में सोच रही है, जिससे उसे जिंदगी में प्यार और इज्जत मिली थी। असल में तो विक्रम मल्लाह वहां है ही नहीं। वह मर चुका है। यह सिर्फ फूलन की कल्पना है।
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क्या ये अजीब है कि दोनों औरतों की कल्पना में इतना साम्य है। दोनों अपने जीवन के सबसे दुखद क्षण में सबसे सुंदर क्षण के बारे में सोच रही हैं। जीवन जब सबसे गहरी पीड़ा से गुजर रहा है, मुहब्बत भरा एक हाथ उन्हीं के हाथ को कसकर थामे हुए है।
लेकिन मैंने ये बताने के लिए ये दोनों कहानियां नहीं सुनाईं कि जिंदगी हर क्षण उम्मीद है। कि सामूहिक बलात्कार के समय एक औरत अपनी आंखें बंद करके सोचती है कि उसे प्रेम करने वाले पुरुष ने उसका हाथ कसकर थाम रखा है। वह सोचती है कि वह दरअसल वहां है ही नहीं। वह सोचती है कि सब पहले की तरह सुंदर है। ये तो मैं जानती ही हूं। मैं भी तो एक औरत हूं।
मैं बताना दरअसल कुछ और चाहती हूं।
उस दिन दिल्ली की एम्बैसी में जब उस डच लड़की ने यह बयान दिया तो वहां मौजूद वकील, जिसकी निगाहें अब तक उस डच औरत की छातियों पर गड़ी हुई थीं, को हंसी आ गई। उसने बहुत घूरती, अश्लील नजर से उसे देखा और बोला, "ये कैसे हो सकता है मैडम कि आपने उन्हें देखा ही न हो। आइडेंटीफाई किए बगैर केस कमजोर हो जाएगा। पहचान तो करनी पड़ेगी।" फिर वह धीरे से अपने कुलीग से बोला, "आंखें बंद करके मजे ले रही थी।" वकील साहब इतने से नहीं माने। बाद में बाहर निकलकर ट्रांसलेटर लड़की से बोले, “अरे मैडम, इन लोगों से बात मत करिए। ये विदेशी औरतें बहुत गंदी होती हैं। इनका क्या, ये तो किसी के भी साथ सो जाती हैं।” और सिर्फ वह वकील ही क्यों, उस केस की वकालत कर रहे और उस वक्त कोर्टरूम में मौजूद सारे मर्दों को उस लड़की के बयान पर हंसी ही आई थी। जो लोग कनखियों से उसकी छातियों का एक्सरे निकाल रहे थे, वही उस दिन उसे न्याय दिलाने के लिए वहां बैठे थे।
कोर्ट रूम में उस डच लड़की को समझ में नहीं आया कि हिंदी में कहा क्या गया था। वहां मौजूद ट्रांसलेटर ने उस वाक्य का कभी अनुवाद नहीं किया। और मुझे शक है कि उस डच लड़की का वह बयान भी दर्ज नहीं किया गया था। "क्या आप आइडेंटीफाई कर सकती हैं?" के जवाब में उन्होंने बस इतना ही लिखा होगा, "नहीं।"
मैं कभी आरटीआई लगाकर उस दर्ज बयान की कॉपी जरूर निकलवाऊंगी।
13 comments:
दोनों ही घटनाओं में पीड़िताओं ने पाशविकता के बीच अपनेपन के अस्तित्व की कल्पना कर के पीड़ा पी है। पशु तो वे कहे जायेंगे जो इस गहरे भाव को भी अपसंस्कृति का नाम दे खिल्ली उड़ा रहे हैं।
फेसबुक पर आपका अपडेट पढ़ चुका था। स्त्रियों के बारे में इस तरह की टिप्पणियाँ आम हैं । इतना जुरूर है कि ऐसी मानसिकता रखने वाले इसे पढ़कर थोड़ी बहुत ही सही शर्मिंदगी अवश्य महसूस करेंगे। बहरहाल अपने सुषुप्त ब्लॉग को जाग्रत करने के लिए धन्यवाद !
beech beech mein likhtii raha karo..
You should definitely do what you said in in the last line.... A RTI of that case....
Meanwhile Nice but sad post...
हम भूल गए हैं रख के कहीं …
http://bulletinofblog.blogspot.in/2013/08/blog-post_10.html
samay mile to contact karen ... rasprabha@gmail.com par
kya kahaa jaaye ... shayad kuchh cheezein kabhi bhi nhin badalti ..chaahe waqt kitna bhi aage badh jaaye.
Eye side --> Eye Sight
जब न्याय दिलाने वालों की ये मानसिकता है तो क्या कहें
hey manisha lease keep updating this page....aapke thoughts bht sharp straight aur simple hote haii
kaha ho itne din se dairy update kyu ni karti
Charvi
hey manisha aapki writing bht sharp simple aur straight hai love to read u
kaha ho itne din se dairy update kyu ni karti
घृणित मानसिकता ।
Nice Love Story Added by You Ever. Read Love Stories and प्यार की स्टोरी हिंदी में aur bhi bahut kuch.
Thank You For Sharing.
Aapka yeh article Nayika mein padne ka soubhagya mila. Bas itana hi kahuga ki aapne ek manovaigyanik tathya ko samane lekar aayi hai.
Anta mein, us waqil ki mansikta lagbhag saare desh ke logo ki mansikta ko baya karti hai. Kuch videshi gandi filme dekh kar unke baarein mein is tarah ki roop-rekha bana lena dakiyanoosi hai. Manoj kumar ki /oorab-Paschim ki yaad aati hai, ki apani sanskrito ko mahan batane ke liye doosro ki sanskriti ko galat tarike se nahi darshana chahiye.
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