Monday 7 February 2011

एक पोलिश कवि और एक हिंदुस्‍तानी लड़की

जयपुर से लौटकर
तीसरा हिस्‍सा

शायद वो 17 या 18 तारीख की एक बकवास सी दोपहर थी, जब जयपुर जाने का वक्‍त नजदीक आ रहा था और जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की वेबसाइट पर दिए सभी सत्रों की डीटेल पढ़ते हुए मैंने पाया कि उनमें एक नाम एडम जगायवस्‍की का भी है। ओह, ये क्‍या हो रहा है? एक के बाद एक खुशी और उत्‍तेजना से दीवाना कर देने वाले शॉक। मैंने तुरंत गीत का नंबर घुमाया और उसे भी इस खबर से खुश होने और मुझसे थोड़ी सी ईर्ष्‍या करने का मौका दिया। मैं सचमुच बेहद खुश थी कि मैं जयपुर जा रही थी।

24 तारीख को दरबार हॉल में 11 बजे से एडम जगायवस्‍की का सेशन था – सॉलिटरी सॉलीट्यूड। उनसे बात कर रही थीं उर्वशी बुटालिया। एडम को मैं बेशक तस्‍वीरों में देख चुकी थी। लेकिन तस्‍वीर आंखों के कितनी भी करीब क्‍यों न हो, तस्‍वीर के ठीक बगल में एक अदृश्‍य ऊंची दीवार होती है। हाथ उस दीवार के पार नहीं जाते, लेकिन इस वक्‍त वे ठीक मेरे सामने बैठे थे। मैं उन्‍हें बोलते हुए सुन सकती थी, हाथ बढ़ाकर छू सकती थी। मैंने हाथ बढ़ाकर उन्‍हें छुआ भी था। एडम को देखकर ये नहीं लग रहा था कि यह विस्‍साव शिंबोर्स्‍का और चेस्‍वाव मिवोश की धरती से आने वाला एक महान कवि है। वह एक बेहद साधारण सा इंसान था, जिसकी आंखों में बच्‍चों जैसी चमक और भोलापन था। उसकी आवाज धीमी और किसी गहन कंदरा से आती मालूम देती थी। लेकिन उसके शब्‍दों में प्रेम और अवसाद की गहराई थी।

ये जानना अजीब है और सुंदर भी कि संसार की हर महान रचना Melancholic ही क्‍यों होती है और रचनाकार शांत, गहरा और उदास। दुनिया के हर शोर और बेहिसाब आवाजों के बीच वह अपना एक मौन एकांत रच लेता है और उसे उदासी के रंगों से सजाता है। अवसाद के गाढ़े रंगों से। इस अवसाद का रंग जीवन के गहरे दुखों और मर जाने की हद तक तकलीफ देते अन्‍याय और गैरबराबरी का रंग नहीं है। यह अवसाद जीवन की असल उदासियों से भागने या मुंह चुराने का रास्‍ता भी नहीं है। यह उन तकलीफों का अस्‍वीकार है। दुख और अन्‍याय का अस्‍वीकार है। इस Melancholy  का अपना सुख है, अपना स्‍वाद भी।

उस दिन उन्‍होंने वहां जो कविताएं पढ़ीं, उनमें भी वह स्‍वाद था। एडम की समूची मौजूदगी में वह स्‍वाद था। पता नहीं एक गरीब और चोट खाए मुल्‍क की बहुसंख्‍यक आबादी इतनी परिपक्‍व है या नहीं कि Melancholy  के उस स्‍वाद को परख पाए, उसे जी पाए। लेकिन जिन्‍होंने भी इसे खोजा है, वे जानते हैं इसका नशा। इसमें डूब जाने की बेहिसाब दीवानगी को जानते हैं। और वो बार-बार एडम जगायवस्‍की, चेस्‍वाव मिवोश और शिंबोर्स्‍का की Melancholic दुनिया में लौट-लौटकर जाते हैं।

वो सेशन जिंदगी के एक दिन को खूबसूरत बना देने के लिए काफी था। उसके बाद मैं बिना कुछ किए भी इधर-उधर भटक सकती थी और एक अज्ञात खुशी की चौंध अपने भीतर महसूस कर सकती थी। एक Melancholic खुशी। 24 तारीख की रात  तक मैं बेहद खुश रही। उसी रात होटल के कमरे की बालकनी में खड़ी जब मैं उस  कवि के बारे में सोच रही थी, जो कहता है कि अपने पड़ोसियों के लिए वो कोई वर्ल्‍ड पोएट नहीं है, बल्कि एक आम आदमी है, जो सुबह के नाश्‍ते के लिए ब्रेड खरीदने जाता है तो मैं कतई ये नहीं जानती थी कि अगले दिन इसी वक्‍त मैं उससे कह रही होंगी कि मैं आपसे बहुत प्‍यार करती हूं। मैं उसे धरती के उस कोने के बारे में बताऊंगी, जहां मेरा जन्‍म हुआ। इस देश के उस हिस्‍से के बारे में, जहां मैं बड़ी हुई हूं। मैं तब ये भी नहीं जानती थी कि अपनी उन्‍हीं ईमानदार आंखों से वो मुझसे पूछेंगे, Manisha, tell me about your country. और फिर मैं बताऊंगी एक देश में बसने वाले उन असंख्‍य देशों के बारे में।

25 तारीख की रात जयपुर से दूर आमेर के किले में राइटर्स बॉल था। वहां कुछ चुनिंदा लोग ही आमंत्रित थे। यह किला शहर से इतना दूर था कि शहर की चमकीली बत्तियों के आखिरी निशान तक वहां नहीं पहुंचते थे। दूर तक काला आसमान था और किले की भव्‍य दीवारें। एक हाथ में वाइन का ग्‍लास और दूसरे में सिगरेट लिए मैं दूर अकेली खड़ी खुश होती, बातें करती, नाचती और संगीत में डूबी हुई भीड़ को देख रही थी। भीड़ में मैं अकसर ऐसा ही करती हूं। खुद को खोया हुआ सा पाती हूं और फिर एक कोना ढूंढकर अपना एक सुरक्षा घेरा बना लेती हूं। इस घेरे में मैं खुश होती हूं और उदास। एक Melancholic खुशी।

मैं और एडम जगायवस्‍की : तस्‍वीर जो उनकी पत्‍नी ने खींची थी
मैं खड़ी थी कि तभी मेरी नजर एडम और उन दो लड़कियों मोनिका और मारीया पर पड़ी, जिन्‍होंने उनकी कविताओं का हिंदी में अनुवाद किया है। वो दोनों मुझे एक दिन पहले एडम के सेशन में मिल चुकी थीं और उन्‍होंने बताया था कि हिंदी ब्‍लॉग वाले सेशन में उन्‍होंने मुझे बोलते हुए सुना था और ये भी कि मैंने सबसे अच्‍छा बोला। (ऐसा उनका कहना था।) उन्‍होंने मुझे एडम की हिंदी में अनूदित किताब पराई सुंदरता में कि एक कॉपी भेंट की।

अब तक वो भी मुझे देख चुकी थीं। उन्‍होंने आंखों से स्‍वागत किया और मैं उनके पास गई। मौसम बहुत मीठा और खुशगवार था। एडम हाथ में वाइन का एक गिलास लिए मुस्‍कुरा रहे थे। मुझे लगा अब मैं उनसे वो कह सकती हूं, जो कल नहीं कह पाई। मैंने उनसे वो सब कहा, जो पिछली रात होटल के कमरे की बालकनी में खड़ी मैं सोच रही थी। 

Adam, I like you and your poems so much that I am almost in love with you.
एडम बड़े प्‍यार से मुस्‍कुराए। 
Thank you dear.
फिर मैंने अपने पर्स से एक कैमरा निकाला और मोनिका के बगल में ही बैठी हुई एक बेहद खूबसूरत सी स्‍त्री से पूछा, Can you please take a picture of us?
Sure.
और कैमरा मैं उनके हाथों में थमाकर एडम के बगल में बैठ गई। मेरा हाथ उनके कंधों पर था। मेरी आंखों में बेहिसाब खुशी की चमक थी। अचानक वह बोल पड़ीं,
Surely I will but please mind, I am his wife.
Oops :(
Well, Its ok. But still you can take one picture.
:)
उन्‍होंने हमारी तस्‍वीर ली। हम चारों आपस में काफी हंसी-मजाक कर रहे थे। तभी मोनिका ने पूछा, Manisha, tell me one thing? Why did you say that you are almost in love? Why not completely?
Well (I looked at his wife, gave her a smile and said) because of her.

एडम अपनी पत्‍नी के साथ
एडम, उनकी पत्‍नी, मोनिका, मारीया और मैं, सभी ठठाकर हंस पड़े और मैंने आगे जोड़ा- Because of her and because of my boyfriend.

If he will come to know that you are here, expressing your affection for Adam, will leave all his work and run for Jaipur right away. यह मारीया थीं। उन्‍होंने एक पंजाबी से विवाह किया है और पिछले तीस सालों से हिंदुस्‍तान में रह रही हैं।

यह सवाल मारीया और मोनिका दोनों का ही था शायद कि जिस तरह उस दिन ब्‍लॉग वाले सेशन में मैंने बेहिसाब, बेखौफ बातें कीं और जिस तरह सिगरेट और वाइन के साथ वहां खड़ी थी, एक इंडियन लड़की होकर मैं ऐसे जीना कैसे अफोर्ड कर पाती हूं।

मोनिका पोलैंड में हिंदी पढ़ाती हैं और मारीया तीस साल से हिंदुस्तान में रह रही हैं। वह जानती हैं इस देश को और इस देश की लड़कियों को भी। अच्‍छी इंडियन लड़कियां ऐसी नहीं होतीं। तुम इंडियन तो हो, तो क्‍या अच्‍छी नहीं हो।

बेशक मेरे लिए ये अफोर्ड कर पाना आसान नहीं है क्‍योंकि मैं हिंदुस्‍तान के उस मुट्ठी भर अमीर, अपर क्‍लास एलीट वर्ग से भी नहीं आती, जिसके लिए तथाकथित परंपराएं, नैतिकता ज्‍यादा मायने नहीं रखते। वे आधुनिक हैं, जिसे पामुक बार-बार कहते हैं – Modern. A writer must should be first of all a Modern. वे अंग्रेजीदां हैं और अंग्रेजी तमाम गुलामी और अंतर्विरोधों के बावजूद एक हद तक लिबरेट तो करती ही है। मैं हिंदी प्रदेश के एक निम्‍न मध्‍यवर्गीय परिवार की लड़की हूं और बहुत छोटे नैतिक दायरे में ही बड़ी हुई हूं। मुझे बहुत लड़ना पड़ा है और आज भी हर दिन लड़ती हूं। अपने आसपास की दुनिया से और अपने आप से भी।
लेकिन मेरा जवाब बहुत साफ था - 

Monika, I am always considered as a bad girl.
You should have proud to be a bad girl.
Tell me Manisha, what bad things you do? यह सवाल एडम की पत्‍नी पूछ रही थीं। 
I said, I live my life the way I want to live.
Oh, that’s the hell, just not bad.

शायद वो भी जानती होंगी हिंदुस्‍तान को। तभी तो उन्‍हें अपनी मर्जी से अपनी तरह की जिंदगी जीने का निर्णय सिर्फ बुरा नहीं, बल्कि नरक बराबर लगा था।

एडम और उनकी पत्‍नी। साथ मैं है मोनिका ब्रोवार्चिक।
मारीया हिंदुस्‍तान के अपने अनुभव बताने लगीं। उन्‍होंने कहा, अब तो स्थितियां फिर भी काफी बदल गई हैं। 25 साल पहले अगर मैं आधे घंटे के लिए भी घर से कहीं बाहर जा रही होती तो मुझे अपनी सास को बताकर जाना पड़ता था कि मैं कहां जा रही हूं और कब लौटूंगी।

इंडिया के बारे में जानना कितना इंटरेस्टिंग है न ?

मामूली इंसानी आजादी के प्रति दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का जितना अलोकतांत्रिक रवैया है, क्‍या हम कभी सोचते हैं कि ज्‍यादा आधुनिक विचारों वाली धरती से आने वाले लोग इस झूठ के बारे में क्‍या सोचते होंगे। कितने मक्‍कार हैं हम। हर चीज में दोहरापन। गरीबी और गुलामी का कितना लंबा इतिहास है। कैसे बेतरतीब बिखरे अंधेरे हैं और उस पर रोशनी की चमकदार पर्तें सजाने की कितनी मुस्‍तैद परंपरा। हमारी बार-बार टूटी रीढ़ ने, दुख और गुलामी ने हमें इतनी भी समझ नहीं दी, इतना भी परिपक्‍व नहीं बनाया कि हम इन दुखों को समझ पाते या कम से कम ठीक से देख ही पाते। इतने तो बड़े हो पाते कि Melancholy में एक बार उतर पाते। हमने गैरबराबरी और अन्‍याय को जितनी इज्‍जत से स्‍वीकार किया है और कभी सवाल भी नहीं किया, ये ख्‍याल भी डराता है।

एडम ने मुझसे पूछा था, Manisha, tell me about your country. What India is?
मैं क्‍या कहती। कोई एक हिंदुस्‍तान हो तो बताऊं। 
यहां एक देश में कई देश बसते हैं। 
फिर भी मैंने उन्‍हें बताया अपने देश के बारे में। 

जारी……..

पहला हिस्‍सा

दूसरा हिस्‍सा

16 comments:

दीपक 'मशाल' said...

Came to know about your presence there in Jaipur literature festival by watching you there in the discussion.. I can imagine how exciting is to meet the poet like Adam.. waiting for your answer... India, as Manisha thinks... :)

Unknown said...

welcome back after what was such a long hiatus. and thanks for the notes from Jaipur. happy for you that you met Pamuk, Zagajewski and other greats.

love your passion for being "modern" and living life on your terms. keep it up and keep us posted.

just 1 bit about your rant against the "people who read hindi newspapers" or who are in awe of "purity of virginity" or the sundry orthodoxy: having a point of view and defending it is all dandy. being a student of complex human nature has taught me that there is same amount of texture, cognition, emotion and appreciation in so called orthodox bourgeois as there is in Vikram Seth or other luminaries of the lit fest. The difference is in communication and expression. we are all with same frailities and strengths. deep down each of us has stereotypes and framework of experiencing the world (what we call "knowledge"). none of the frames is better than the other.

what you value might be different from what someone else values and that is fine. in fact it is great as the differences manifest in the beautiful complexity of being a human. the problem arise when we start deigning towards the people with different value systems than ours. isnt this, at a certain level, similar to the thoughts of orthodoxy against which you rail so vehemently :)))? food for thought

PS: watch "Whatever Works" if you havent done so already

welcome back again.

प्रवीण पाण्डेय said...

हर वेष में मेरा देश।

अमिताभ मीत said...

Envy you !!

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

मनीषा, अगली किश्त जल्दी.... इंतज़ार सहन नहीं हो रहा.

Sanjeet Tripathi said...

एक साथ मैच्योर बने रहना और बच्ची भी। हां, आपकी पिछली और इस पोस्ट को पढ़कर लगा कि आपके अंदर एक बच्ची अभी भी बची हुई है। बचाए रखिए इसे।

यह कथन सही लगा कि " यहां एक देश में कई देश बसते हैं"।

चलिए अब अगली किश्त का इंतजार करते हैं।

VICHAAR SHOONYA said...

मनीषा जी आपकी नजर में melancholy का सही हिंदी पर्याय वाची शब्द कौन सा होगा.

मुझे इस पोस्ट कि ये पंक्ति "पता नहीं एक गरीब और चोट खाए मुल्‍क की बहुसंख्‍यक आबादी इतनी परिपक्‍व है या नहीं कि Melancholy के उस स्‍वाद को परख पाए, उसे जी पाए।" समझ नहीं आयी. मेरी समझ से तो

गरीब और चोट खाए लोगों को पीड़ा कि समझ हो सकती है चाहे वो शारीरिक पीड़ा हो या मानसिक, पर Melancholy नाम कि बीमारी तो उन बेचारों पर ही शोभा पाती है जिनके पेट भरे होते हैं.

इलाहाबादी अडडा said...

हम बदनसीबों के लिए क्‍यूं ईष्‍या पैदा कर रहीं है मैम!!!!!

rashmi ravija said...

Oh, that’s the hell, just not bad.

And most of the girls cant even dream of this 'Hell'

For them this 'Hell' can thousand times better than their so called Paradise

मनोज पटेल said...

तीनों हिस्से एक साथ पढ़ गया, जयपुर के उन लम्हों को महसूस कर पा रहा हूँ. आपको धन्यवाद. कहने की जरूरत नहीं कि अगले हिस्सों का बेसब्री से इंतज़ार है.

श्रुति अग्रवाल said...

कैसी हैं जनाब, तस्वीर में तो बेहद बेतकल्लुफ और खुश नजर आ रही हैं। इतने खूबसूरत लम्हें जीने के बाद चेहरा चमकना ही चाहिए....लेकिन ये क्या, सिगरेट से तौबा की थी ना। वाइन का एकाध ग्लास ठीक है। तुम्हारे शरीर की ऐसी-तैसी नहीं करेगा लेकिन सिगरेट इस बला से बुरी तरह तौबा कर लो...और किसी के लिए नहीं तो अपने ब्वॉय फ्रेंड की ही खातिर ।

sandeep sharma said...

:)
nice post

विजय गौड़ said...

kya chhuta hua hissa,jise jaari rahna tha, padhne ka awsar milega ?

شہروز said...

बेहद पठनीय! अपन करीबतर होते रहते हैं आपकी हरेक पोस्ट से. बेहतर किया आपने यहाँ पोस्ट कर.हमज़बान की नयी पोस्ट आतंक के विरुद्ध जिहाद http://hamzabaan.blogspot.com/2011/07/blog-post_14.htmlज़रूर पढ़ें और इस मुहीम में शामिल हों.

वर्षा said...

मनीषा आपका ब्लॉग कई बार पढ़ चुकी हूं, इस बार काफी दिनों बाद आई, ऑफिस में एक मित्र के साथ आपका जिक्र हुआ। मैं बस अपनी मर्जी से ही जीने के लिए होनेवाली मशक्कतों से बखूबी परीचित हूं। कई बार उदास होती हूं, कई बार मशीनी जिंदगी का हिस्सा। एडम के साथ आपकी तस्वीरें देख और अनुभव जानकर सचमुच बहुत अच्छा लगा।
आपको शुभकामनाएं।

manish badkas said...

व्यक्ति को नहीं बात को पकड़ो
बातों में निहित भावनाओं को जकड़ो
अब दूर खड़े हो एकटक निहारो इन भावनाओं को
जाओ, अब तुम आज़ाद हो इस जगत पहेली से
:-))