Wednesday 17 February 2010

अपने दीवाने को तू चूम सके

उसने अपनी बेटी के लिए एक कविता लिखी थी। उसने कामना की थी कि उसकी बेटी हरसिंगार सी खिले और हर ओर छा जाए। बेले सी उसकी खुशबू संसार की वादियों में बिखर जाए। वह पहाड़ी बर्फ सी निर्मल हो। उसकी चमक के आगे शर्मसार हों सितारे। वह अलकनंदा सी बहे और राह की हर चट्टान को निर्मल कर दे। वह हवाओं सी उन्‍मुक्‍त हो और हिमालय सी उदात्‍त।

पिता ने चाहा कि वह संसार के हर बंधन से ऊपर उठ सके। वह अपनी अंतरात्‍मा में अवस्थित हो। हवाएं उसका रूप गढ़ें और प्रकृति उसका मन। उस कविता में बेटी के लिए प्रेम, गरिमा, उदात्‍तता और स्‍वतंत्रता की सम्‍मोहक पुकार थी।

तू निर्बंध सारी धरती पर घूम सके

अपने दीवाने को तू चूम सके।

इसी सदी के पूर्वार्द्व में पहाड़ों की गोद में बैठा एक पिता कह रहा था अपनी बेटी से कि अपने दीवाने को तू चूम सके।

बेटी तब महज दो साल की थी।

मां ने सुनी कविता। आखिरी पंक्ति पर अटक गई। ये क्‍या दीवानों सी बातें करते हो तुम। मैं कभी अपनी बेटी को यह कविता पढ़ने नहीं दूंगी, मां ने बनावटी गुस्‍से में कहा।

उस रात जब सोई थी मां और दो साल की बच्‍ची उसके सीने से लिपटी, मां सोच रही थी। उस रात मां को पहली बार थोड़ा रश्‍क हुआ अपनी बेटी से। कैसा पिता मिला है इसे? मां ने अपने पिता से तुलना की अपनी बेटी के पिता की। भीतर कुछ टूटा। फिर मां ने धीरे से झुककर बेटी को चूम लिया और बोली,

तू निर्बंध सारी धरती पर घूम सके

अपने दीवाने को तू चूम सके।

(मेरे एक दोस्‍त ने अपनी बेटी के लिए एक लंबी कविता लिखी थी और उसी कविता की एक पंक्ति थी यह अपने दीवाने को तू चूम सके।)

25 comments:

कडुवासच said...

....behad khoobsoorat abhivyakti !!!

Manvinder said...

मनीषा , तुम्हारे ब्लॉग पर काफी दिनों के बाद आना हुआ है...अच्छा लगा .......एक माँ की दिली भावनाओं का सुंदर चित्रण है .......सीने से लगी बेटी और उसकी माँ ..

Anonymous said...

आपने जो कहा:
"तू निर्बंध सारी धरती पर घूम सके
अपने दीवाने को तू चूम सके"
जो नहीं कहा ...... उस पर मैं भी कुछ नहीं कहता. अनकहा ही छोड़ देते हैं.

डिम्पल मल्होत्रा said...

पिता ने चाहा कि वह संसार के हर बंधन से ऊपर उठ सके। वह अपनी अंतरात्‍मा में अवस्थित हो। हवाएं उसका रूप गढ़ें और प्रकृति उसका मन। उस कविता में बेटी के लिए प्रेम, गरिमा, उदात्‍तता और स्‍वतंत्रता की सम्‍मोहक पुकार थी।

तू निर्बंध सारी धरती पर घूम सके

अपने दीवाने को तू चूम सके।touched

उद्गार said...

सुंदर रचना. अच्छी अभिव्यक्ति. बधाई. मेरी कुटिया में भी पधारें.

Kulwant Happy said...

एक पिता का अपनी बेटी के प्रति प्रेम देख। दिल और आँखें खुशी से भर आई। सच कहूँ, ऐसा लगा मेरे दिमाग की स्तर हस्तांतरण होकर उनके पास चली गई। बेटी का पिता होने का अहसास अब जाकर जाना है।

डॉ .अनुराग said...

मेरा भी सपना है एक नन्ही pari का ..सेंटी मूड

Ashok Pande said...

पोस्ट छोटी नहीं हो गई?

ऐसे ही सवाल आया मन में. बाक़ी हमेशा की तरह उम्दा.

Anonymous said...

Tumhari ye baat
pankh laga kar
saari kaaynaat me jayegi
Aur naye phool khilaayegi.

Ye baat baat bhar nahin hai
Ye baat naye dwaar kholegi
jise bhi chalna aata hai
uske sath ho legi...

Tum dekhna,
Ye baat bolegi.

Randhir Singh Suman said...

nice

Atul CHATURVEDI said...

किसी शायर ने कहा था -बेटियां जब जवान होती हैं , बाप का इम्तिहान होती हैं । बाप उड़-उड़ के थक जाता है,बेटियां आसमान होती हैं ।

Sanjeet Tripathi said...

सच कहूं तो शुरु में पढ़ते हुए यह लगा कि यह
आपने अपने उपर लिखा है, अर्थात यह कि
आपके पिता ने यह पंक्तियां लिखी लेकिन आगे पूरा पढ़ा तो समझ में आया।

सच कहूं तो बहुअर्थी है यह पंक्तियां लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है एक पिता की ऐसी कामना अपनी बेटी के लिए ही, काश सभी बेटियों के पिता ऐसे ही हों
आप लिखती रहें, किताबों वाली बात अधूरी नहीं रह गई क्या?……

अनिल कान्त said...

अवश्य रश्क हुआ होगा...

Pratibha Katiyar said...

sapne si sundar baat!

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

बहुत सुंदर पोस्ट, थोड़ा सेंटी हो रही हूं और उस मां की तरह इस दो साल की बच्ची से ईर्ष्या भी कर रही हूं।

Anonymous said...

Rajkishore ji aur tumhare liye
12 feb. wali post.
Usme jo msg hai, usme ye lines bhi jod lo :
"Ek aur anokhi ladki yahaan milegi.
Tumhare sath jo bhi yahaan aana chaahe, lana tum. Bas ek hi khatra hai : Yahaan ek suchna lagi hai : "Hamaare yahaan saare jahaan ke bigaade huye sudhaare jaate hain." Lekin kisi ko batana mat ki jo bhi yahaan aaye, hame hi bigaad kar chale gaye. So don't worry.

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर!
घुघूतीबासूती

Ashok Kumar pandey said...

वाकई एक बेहतरीन पोस्ट…
मैं भी यही चाहूंगा अपनी बिटिया के लिये कि वह मुक्त गगन में पंख पसारे उड़ सके,सीखने के लिये कर सके तमाम सारे ट्रायल एण्ड एरर, चुन सके, ना कह सके और वह सब कर सके जो वह सचमुच करना चाहती है।

काश की वह लंबी कविता आप मुझे पढ़वा देतीं।

ashokk34@gmail.com

kavita verma said...

bahut sunder kamana hai ek pita ki apani putri ke liye.
pita putri ke ek adhik yathath rishte ko janana chahe to mere blog par aaye.
par sach me us pita ka uddat prem man ko chho gaya.

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

शब्द खो गये है, ढूढ रहा हू...

अग्येय ने भी शायद एक कविता अपनी बेटी पर लिखी थी..लखनऊ मे मेरा एक रूममेट था, इलाहाबाद से पढ के वापस आया था...उससे ही ऐसी बाते होती थी...उसने ही बताया था तभी मैने ’शेखर -एक जीवनी’ पढी थी.. और कह सकता हू कि वो हिन्दी की सब्से अच्छी किताब है....उसमे एक अन्ग्रेजी शेर है...

There is a lad, and I am that poor groom...
who is fallen in love, but dont know with whom...

रेयाज़ बघाकोली said...

Bahut sunder rachna hai...jisme apne beti ke prati pyaar kut-kut kar bhara hai...Manisha ji,Ummeed hai bhavisya mein puri kavita prastut karengi.....

GGShaikh said...

GGShaikh said:
'अपने दीवाने को तू चूम सके'...
जैसे स्त्री के अतल 'सच' को पहचान, पहले पिता फ़िर माँ ने बरी-बारी अपनी स्नेह-सम्मति
और आशीर्वचन दर्शाए हो...बेटी के समग्र जीवन को लेकर...
माँ का शुरू का अनमनापन एक कच्ची गाँठ सा. पर माँ भी तो एक स्त्री ही ठहरी, फ़िर
उसका अतल सच बेटी के अतल सच से जुदा कहाँ...

इन उदात भावों को मनीषा जी ने भी उतनी ही अतलता से प्रस्तुत किया.
'अपने दीवाने को तू चूम सके' पोस्ट की उनकी शुरू की भूमिका भी एक उत्कृष्ट कविता ही लगी...
...'बर्फ सी निर्मल, शर्मसार सितारे, अलकनंदा चट्टानों को निर्मल करे, हवाओं सी उन्मुक्त
हिमालय सी उदात...संसार के हर बंधन से ऊपर उठ अंतरात्मा में अवस्थित हो, हवाएँ
रूप गढ़े, प्रकृति मन... प्रेम, गरिमा, उदात्ता और स्वतंत्रता...'.
परिकल्पना भी हो जैसे नारी विमर्श की...

इतने नितरे-नितरे शब्द छन्नकर उतर आते हैं मनीषा जी की लेखनी में...?

अपने एक correspondence में, कभी मैंने मनीषा जी से पूछा था कि "बीच-बीच
में एक लंबे से वक्फ़े में, तुम कहाँ खो जाती हो...?" उन्हों ने एक हल्के-फुल्के अंदाज़
में कहा था: " अपने creative cell में चली जाती हूँ...".
तब इस बात को मैंने भी हल्के-फुल्के अंदाज़ में ही लिया था. पर अभी-अभी इस पोस्ट को पढ़कर
उस हल्के-फुल्के अंदाज़ में कही बात का सच भी जाना...

Unknown said...

Kyu paheli ban jati he kisi zindagi. . Kyu saheli ban jati he jati kisi k zindagi. .
Apke liye. . .

Bahut khub likha. .

pinki chetani said...

mujhe bhi rask hai uske pita se..

pinki chetani said...

mujhe bhi rask hai uske pita se..