लिखना आसान नहीं होता। लिखने की बुनियादी तमीज हो, तब भी नहीं। कम-से-कम मेरे लिए तो नहीं ही है।
वैसे भी मैं हर काम झोंक में करती हूं। झोंक चढ़ी तो सही, और न चढ़ी तो सब गुड़गोबर। एक बार झोंका आता है तो फिर आता ही चला जाता है। फिर तो मैं लिख-लिखकर धरती-आसमान एक कर डालूंगी। और अगर झक्क नहीं चढ़ी तो लाख सिर पटको, मेरे मुंह मुंह से कुछ फूटेगा ही नहीं।
जैसे बचपन में कभी-कभी सफाई की झक्क सवार हुआ करती थी। फिर क्या था, घर का कोना-अंतरा, डिब्बे-विब्बे, आलमारी-पर्दे, कपड़े, कुर्सी-मेज, स्टूल-गुलदान, जूता-चप्पल, अंदर-बाहर सब चमक जाता है। मजाल है, मेरी सफाई से घर की कोई भी चीज बच जाए। मां कहतीं, आज भूत चढ़ा है, सब चुपचाप बैठो। और जो एक बार भूत उतरा तो फिर चाहे हफ्तों घर गंधाता रहे, मैं अपनी जगह से हिलने वाली नहीं।
मेरे बहुत सारे दोस्त ब्लॉग की दुनिया में सक्रिय हैं, और मुझे भी घसीटने के चक्कर में रहते थे। हमेशा जोर देते, कब शुरू कर रही हो, और मैं टालती जाती। ब्लॉग बनाना घर खरीदने या बिटिया की शादी करने जैसा कोई उत्सव हो गया था। लगता था, पता नहीं कौन-सा किला फतह करना है। आज एक चरण तो पार हुआ।
अभिव्यक्ति का कोई तरीका अगर थोड़ा-बहुत मुझे आता है तो वह लिखना ही है। गाने की खास तमीज नहीं, कैनवास पर ब्रश चलाना भी नहीं आता, अंतर्मुखी या मुंह चलाने में दरिद्दर नहीं हूं, फिर भी मुझे कुछ कहना हो तो शब्दों का ही सहारा होता है।
उन्हीं शब्दों के भरोसे इस बेदखल की डायरी को सार्वजनिक कर रही हूं।
वैसे भी मैं हर काम झोंक में करती हूं। झोंक चढ़ी तो सही, और न चढ़ी तो सब गुड़गोबर। एक बार झोंका आता है तो फिर आता ही चला जाता है। फिर तो मैं लिख-लिखकर धरती-आसमान एक कर डालूंगी। और अगर झक्क नहीं चढ़ी तो लाख सिर पटको, मेरे मुंह मुंह से कुछ फूटेगा ही नहीं।
जैसे बचपन में कभी-कभी सफाई की झक्क सवार हुआ करती थी। फिर क्या था, घर का कोना-अंतरा, डिब्बे-विब्बे, आलमारी-पर्दे, कपड़े, कुर्सी-मेज, स्टूल-गुलदान, जूता-चप्पल, अंदर-बाहर सब चमक जाता है। मजाल है, मेरी सफाई से घर की कोई भी चीज बच जाए। मां कहतीं, आज भूत चढ़ा है, सब चुपचाप बैठो। और जो एक बार भूत उतरा तो फिर चाहे हफ्तों घर गंधाता रहे, मैं अपनी जगह से हिलने वाली नहीं।
मेरे बहुत सारे दोस्त ब्लॉग की दुनिया में सक्रिय हैं, और मुझे भी घसीटने के चक्कर में रहते थे। हमेशा जोर देते, कब शुरू कर रही हो, और मैं टालती जाती। ब्लॉग बनाना घर खरीदने या बिटिया की शादी करने जैसा कोई उत्सव हो गया था। लगता था, पता नहीं कौन-सा किला फतह करना है। आज एक चरण तो पार हुआ।
अभिव्यक्ति का कोई तरीका अगर थोड़ा-बहुत मुझे आता है तो वह लिखना ही है। गाने की खास तमीज नहीं, कैनवास पर ब्रश चलाना भी नहीं आता, अंतर्मुखी या मुंह चलाने में दरिद्दर नहीं हूं, फिर भी मुझे कुछ कहना हो तो शब्दों का ही सहारा होता है।
उन्हीं शब्दों के भरोसे इस बेदखल की डायरी को सार्वजनिक कर रही हूं।
10 comments:
वाह.. स्वागत है मनीषा आप का.. और उम्मीद है कि आप बराबर लिखती रहेंगी झोंक में.. शुभकामनाएं
अपने ब्लॉग की सेटिंग्स में जा कर सभी लोग टिप्पणियाँ कर सकें इस विकल्प का चुनाव कीजिये.. मेरी तरह और भी लोग चाह कर भी टिप्पणी नहीं कर पाए होंगे..
अभय तिवारी
शुक्रिया अभय। आपके कहेनुसार आते ही मैंने पहला काम यही किया कि सभी मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी कर सकें।
दोस्त लोग अपनी कोशिश में कामयाब हुये इसके लिये बधाई! दोस्तों को और आपको भी। कामना है कि लिखने की झक बनी रहे।
मनीषा
मैं भी आपको पढ़ता रहा हूँ....
यहाँ भी पढ़ूँगा....
बधाई और स्वागत!
खुदा से दुआ मांगते हैं कि लिखने की - खासकर इस ब्लॉग में लिखने की झक चढ़ी ही रहे... कभी उतरे ही नहीं. आपके जैसे लेखन का तेवर बिरलों को ही हासिल होता है. उम्मीद है हमें नए तेवर की और ढेरों सामग्री जानने-पढ़ने को मिलेगी...
Impressive writing style,please keep it up!
manisha you are doin fine job ! keep on this fighting spirit today you may feel alone but i am dead sure tommarrow people wl enjoy ur company and wd feel pride yo follow you ! wat about your health ? are you feeling better ? wish you bettr health and calm and peaceful life vikas
manisha you are doin fine job ! keep on this fighting spirit today you may feel alone but i am dead sure tommarrow people wl enjoy ur company and wd feel pride yo follow you ! wat about your health ? are you feeling better ? wish you bettr health and calm and peaceful life vikas
likhti to aap achha hain,bade kayee bar padhte huye lagta hai ki bade hi vidrohi tewar hain-- aur wo bhi ek female character me------ha ek chiz aur aapki khoobsurti ne bhi bahut prabhawit kiya
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