याद नहीं पड़ता कि आखिरी कविता मैंने कब लिखी थी। 6-7 साल हुए, कविता लिखना छोड़ दिया। इलाहाबाद छोड़ते ही कविता भी छूट गई। पहले तो बहुत लिखती थी। आधी रात में जागकर, जब सब सो जाते, टेबल लैंप जलाकर गुलाबी रंग की स्याही वाली कलम से लाल जिल्द वाली मोटी डायरी में सुंदर अक्षरों में कविता फेयर करती।
बाद में कविता सधी नहीं मुझसे। यहां इंदौर में एक शब्द बड़ा प्रचलित है, संपट। सो मुझे संपट नहीं पड़ती कविता। पर कोढ़ में खाज की तरह परसों रात अचानक कविता फूट पड़ी। 7 साल पहले की तरह रात दो बजे उठकर कविता लिखने लगी। ब्लॉगियाने का प्रथम लक्षण प्रकट हुआ है। सो आज यह कविता :
प्यार में डूबी हुई लड़कियां - 1
रेशम के दुपट्टे में टांकती हैं सितारा
देह मल-मलकर नहाती हैं,
करीने से सजाती हैं बाल
आंखों में काजल लगाती हैं
प्यार में डूबी हुई लड़कियां.....
बाद में कविता सधी नहीं मुझसे। यहां इंदौर में एक शब्द बड़ा प्रचलित है, संपट। सो मुझे संपट नहीं पड़ती कविता। पर कोढ़ में खाज की तरह परसों रात अचानक कविता फूट पड़ी। 7 साल पहले की तरह रात दो बजे उठकर कविता लिखने लगी। ब्लॉगियाने का प्रथम लक्षण प्रकट हुआ है। सो आज यह कविता :
प्यार में डूबी हुई लड़कियां - 1
रेशम के दुपट्टे में टांकती हैं सितारा
देह मल-मलकर नहाती हैं,
करीने से सजाती हैं बाल
आंखों में काजल लगाती हैं
प्यार में डूबी हुई लड़कियां.....
मन-ही-मन मुस्कुराती हैं अकेले में
बात-बेबात चहकती
आईने में निहारती अपनी छातियों को
कनखियों से
खुद ही शरमाकर नजरें फिराती हैं
प्यार में डूबी हुई लड़कियां....
डाकिए का करती हैं इंतजार
मन-ही-मन लिखती हैं जवाब
आने वाले खत का
पिछले दफे मिले एक चुंबन की स्मृति
हीरे की तरह संजोती हैं अपने भीतर
प्यार में डूबी हुई लड़कियां....
प्यार में डूबी हुई लड़कियां
नदी हो जाती हैं
और पतंग भी
कल-कल करती बहती हैं
नाप लेती है सारा आसमान
किसी रस्सी से नहीं बंधती
प्यार में डूबी हुई लड़कियां.....
प्यार में डूबी हुई लड़कियां - २
प्यार में डूबी हुई लड़कियों से
सब डरते हैं
डरता है समाज
मां डरती है,
पिता को नींद नहीं आती रात भर,
भाई क्रोध से फुंफकारते हैं,
पड़ोसी दांतों तले उंगली दबाते
रहस्य से पर्दा उठाते हैं.....
लडकी जो तालाब थी अब तक
ठहरी हुई झील
कैसे हो गई नदी
और उससे भी बढ़कर आबशार
बांधे नहीं बंधती
बहती ही जाती है
झर-झर-झर-झर।
प्यार में डूबी हुई लड़कियां - ३
प्यार में डूबी हुई लड़कियां
अब लड़की नहीं रही
न नदी, न पतंग, न आबशार....
प्यार में डूबी हुई लड़कियां
अकेली थीं
अपने घरों, शहरों, मुहल्लों में
वो और अकेली होती गईं
मां-पिता-भाई सब जीते
प्यार मे डूबी हुई लड़कियों से
लड़कियां अकेली थीं,
और वे बहुत सारे....
अकेली थीं
अपने घरों, शहरों, मुहल्लों में
वो और अकेली होती गईं
मां-पिता-भाई सब जीते
प्यार मे डूबी हुई लड़कियों से
लड़कियां अकेली थीं,
और वे बहुत सारे....
प्यार में डूबी हुई लड़कियां
अब मांएं हैं खुद
प्यार में डूबी हुई लड़कियों की
और डरती हैं
अपनी बेटी के प्यार में डूब जाने से
उसके आबशार हो जाने से........
अब मांएं हैं खुद
प्यार में डूबी हुई लड़कियों की
और डरती हैं
अपनी बेटी के प्यार में डूब जाने से
उसके आबशार हो जाने से........
15 comments:
बाप रे ये प्यार में डूबी हुई लड़कियां! बहुत खूबसूरत दिख रही हैं
बहुत खूब..
मनीषा जी, पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ। बेहद सुखद अनुभव था आपको पढ़ना। 'प्यार में डूबी हुई लड़कियाँ' बहुत सच्ची, प्यार में डूबी और वेदनामयी कविताएँ हैं। आप बहुत अच्छा लिखती हैं। बाकी पोस्ट भी पढ़ी।
आपके ब्लॉग पर फिर आना चाहूँगा।
- गौरव सोलंकी
www.merasaman.blogspot.com
बहुत् अच्छी कवितायें लिखीं। आबसार माने क्या हुये? अच्छा हुआ कि कविता 'संपट' गयी। :)
अनूप जी, आबशार का अर्थ होता है, झरना। यह फारसी का पुल्लिंग शब्द है। लड़कियां झरना हो गई हैं।
"डाकिए का करती हैं इंतजार" और आज शायद मोबाइल के एस एम एस का? वैसे 'धोना' अच्छा आता है आपको,जिन्दगी की बारीकियों का। इस उम्मीद के साथ की अगले लेख में कम से कम किसी मल्टीनेशनल कम्पनी के साबुन से जरूर किसी को धोना……।
अच्छा चित्रण किया आपने प्यार में डूबी हुई लड़कियों क्या. लेकिन उनका क्या जो प्यार में नहीं डूबी. क्या उन्होने अपने राजकुमार का इंतजार नहीं किया??
http://kakesh.com
बहुत बढिया! सात साल बाद कविताएँ लौटी तो प्यार में डूबी लड्कियाँ ले कर लौटीं... क्या बात है! पहली बार आया हूँ आपके ब्लाग पर यहाँ आ कर अच्छा लगा. बाकी चीजें पढने के लिये फिर लौटुंगा.
hi,
you are just awesome....you have sketched a beautiful picture of girls deeply in love with your heart touching words...i enjoyed it...feel like reading again and again...you have great potential..i am sure one day you are going to be counted among well known writers...keep it up...
बहुत खूब - कविता / संस्मरण पढ़ के थोड़ा ऐसा लगता है के सर्वेश्वर दयाल सक्सेना और अमृता प्रीतम के बीच की ज़मीन हरी हुई, और सारे स्मृति चित्र भी भले लिखे हैं ; शाबाश
दीदी, लडिकयों से प्यार करने को जी चाहता है।
खूबसूरत खयालों को सीधे से....चुपके से उतार दिया कागज़ पर....जैसे कोइ अपना सा टुकड़ा हो...बहुत सुन्दर...
प्यार में डूबी हुई लड़कियों को पढ़कर ....दोबारा पढने का मन किया और फिर पढ़ गया ...बेहतरीन रचना है
कटु सच है....an ugly truth
मनीषा जी, आज रविवार की फुर्सत मे आपके लगभग सारे आलेखों ओर कविताओं का पढ़ने का मौका मिला. पढकर आनंद आया. आपकी अभिव्यक्ति काफी बेबाक और हमारे समाज के सच को बिना लाग-लपेट के सामने रखने वाली है. जयपुर के साहित्य मेले पर लिखे आपके आलेख तथा हमारे समाज में नारियों पर लगी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष पाबंदियों पर आपका लेखन धारदार लगा.
"कविताओं में प्यार में डूबी हुई लड़कियां काफी पसंद आयी..सुंदर विचार को काफी सुंदर शब्द दिए हैं आपने.
आपके लेखन के लिए ढेर सारी शुभकामनाएँ.
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