Monday, 25 February 2008
तुम्हारा होना
ये कविता एक कहानी का हिस्सा थी। कहानी अधूरी रह गई और कविता भी।
इस कविता को पूरा नहीं करना चाहती। ये ऐसे ही अच्छी है, अपने अधूरेपन में..... आज यह कविता.....
तुम्हारा होना
तुम्हारा होना मेरी जिंदगी में ऐसे है,
जैसे झील के पानी पर
ढेरों कमल खिले हों,
जैसे बर्फबारी के बाद की पहली धूप हो,
बाद पतझड़ के
बारिश की नई फुहारें हों जैसे
जैसे भीड़ में मुझे कसकर थामे हो एक हथेली
एशियाटिक की सूनसान सड़क से गुजरते
जल्दबाजी में लिया गया एक चुंबन हो
जैसे प्यार करने के लिए हो तुम्हारी हड़बड़ी, बेचैनी........
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75 comments:
और ...तुम्हारा होना
मेरी ज़िंदगी में ऐसे है,
जैसे एक सांस अभी आखिरी सी
जैसे ठंड के मौसम में बुझा सा अलाव
....जैसे प्यार करने की इच्छा का मरते मरते जीवित होना...एक मुंदी आँख से टपका मोती और
हथेकियों पर गर्म भाप
बहुत सुंदर,
manisha jee,
saadar abhivaadan. kamaal hai ki kisi ke hone matra ko itne alag drishtikon se dekha aur dikhaayaa apne . wo jo bhee hai khushnaseeb hai. aapko padh kar achha laga.
बहुत सुन्दर बिंब और उपमान !
sundr kvita
बहुत सुन्दर!
घुघूती बासूती
jitni sunder kavita ka adhurapan hai ... utni hi sundar kisi anonymous ka us ko purna karna.... dono ek se badh kar ek.
ये अधूरी नही पूर्ण है।
अति सुंदर ।
बहुत ही बढ़िया है ......
भई वाह । देवी, हमें पता ही नहीं था कि आप कविता भी लिखती हैं । अच्छा है । और अधूरी पूरी कविताओं खोजो और पेश करो । हम इंतज़ार करें क्या
mujhe hindi sahitya ki koi samajh nahi hai,isliye sahityik tarike se koi varnan nahi kar sakti.tarif k liye koi shabd hi nahi hain mere paas.
[ यूनुस - इसको पढ़ें - http://bedakhalidiary.blogspot.com/2007/11/blog-post_13.html] - मनीषा - हाँ - मैं सोच रहा था कि अमूमन अमृता प्रीतम की तरफ़ वाला इलाका तो पिछली दो पोस्टों ने झांप लिया था - सर्वेश्वर वाली ज़मीन की तरफ़ आज पूरी अधूरी कविता अच्छी रही - मनीष
मेरा नाम कमल है जिसका जिक्र आपकी इस कविता में है।
आप तो अच्छी कविता कर लेती हैं,सही है, आप यूँ ही लिखती रहें।
मनीषा जी, आपके आलेख तो विचारोत्तेजक होते ही हैं और बहस की काफी गुंजाइश लिए होते हैं, आपकी यह कविता जिसे आपने अधूरी कविता कहा है, भी अंदर तक असर करने वाली है। इस पर आई टिप्पणियाँ दर्शाती हैं कि इसने पढ़ने वालों के दिलों को कितना स्पर्श किया है। यह छोटी -सी कविता अपने आप में सम्पूर्ण कविता है, भले ही रचयिता को अधूरी -सी लगे।
क्रिस्टोफ़र कॉडवेल ने कहा है कि कविता वह है जो पढ़ते हुए आपके भीतर घटित होती है। यह कविता भी कुछ ऐसी ही है।
वो लड़की अकेली नही थी
लेकिन रोड पर सन्नाटा था
अँधेरा हुआ नहीं था
लेकिन शाम ने चादर फैलानी शुरू कर दी थी
आस-पास दूर-दूर तक कोई शख्स नजर नही आ रहा था
लेकिन फिर भी वो लड़की अकेली नहीं थी.....
वो लड़की अकेली नही थी
लेकिन रोड पर सन्नाटा था
अँधेरा हुआ नहीं था
लेकिन शाम ने चादर फैलानी शुरू कर दी थी
आस-पास दूर-दूर तक कोई शख्स नजर नही आ रहा था
लेकिन फिर भी वो लड़की अकेली नहीं थी.....
hi manisha---
why dont u write something on CAREERMINDED WOMEN & PRESENT "SITUATIONS"---i hope u r getting my point----in fact include men also in the same
bahut khoob...bahut sundar ..adhoori hi rahne de.....
मनीषा जी
बहुत सुन्दर कविता।
kavita ret me tadapatee machlee ke samaan hai jo sagar ke kinare choone ko baichain rahtee hai , sundar kavitaa hai...keep it up
nice, thoughtful and sensitive blog.
MANISHAJEE
INDORE KA HU AUR PATRKAR BHI SO AAP KE NAJDIK HI HUA..PAR AAP JO LIKHTI HAIN MAIN ABHI SOCH BHI NAHI PATA..NAIDUNIA MAIN AUR BLOG KE BARE JYADA JANTA NAHI LEKIN SUNA YAHAN VO SAB KAH SAKTE HAIN JO KAHA JA SAKTA HAIN PAR SUNA JANA TOHIN HOTI HAIN...MUJHE SATHA KARE SHAYAD KUCH ACHCHA HI LIKH JAU
PRASHANT SHARMA 9926019421
Shazar Udaas Chidiyon ke Chahchahe ... gumsum....
Bahut Dinon se koi nai mail nahin aapki ?
Hello. This post is likeable, and your blog is very interesting, congratulations :-). I will add in my blogroll =). If possible gives a last there on my blog, it is about the SBTVD, I hope you enjoy. The address is http://sbtvd.blogspot.com. A hug.
It is beautiful, Manisha.
25 फरवरी 2008 की पोस्ट के बाद इतनी लंबी चुप्पी ! मनीषा जी "तुम्हारा होना" जैसी छोटी-सी बेहद खूबसूरत कविता के बाद "बेदख़ल की डायरी" को नियमित देखने की आदत बनाई लेकिन वहाँ नया कुछ ना पाकर निराशा हाथ लगती है। यह चुप्पी क्यों और किसलिए? इस डायरी के अगले पन्ने में कुछ देने के लिए क्या नया कुछ नहीं बन पा रहा है? इंतज़ार बहुत लबा न करायें मनीषा जी !
achcha laga
shayad sarveshwar ne likha tha kuch panktiyan...yaad aa gayee...
uska haath
apne haath me lekar maine socha
zindagi to haath ki tarah garm aur sundar honi chahiye,,
shankar ji, aapne jo lines quote ki hain, ve sarveshwar ki nahin kedarnath singh ki hain.
ees kavita ko aap nay kitna fath (viswas) say likha hay...kee TUMARAHA HONA....per khonay kaa dar v hay...aysa laga kee joo hay usay maalum nahi hay kee ...uska hona ...kisee kay liay ess had tak maynay rakhtee hay....kavita kee sururat hee ...viswas kay saath hay............
may hindi type karna sikh lu..to apnay maan kee baat hu- bahu likh pauu...
manish,
gorakhpur film festival.....
beautiful poem.....
bahut sundar kavita...mujhe to adhoori nahi lagi!
नमस्कार मनीषा जी. मैंने कल ही आपके ब्लाग के सभी लेख पढे. जिसका पता मुझे रवीश कुमार के आर्टिकल से लगा था. यकीनन आपकी लेखन शैली और कलम में ईमानदारी की ताक़त अथाह है. मैंने खुद से वादा किया की मैं भी कभी इतनी ही ईमानदारी और ऐसी ही लेखन शैली के साथ लिख पाउँगा. आपका आर्टिकल "डिब्बाबंद मुल्क, बड़ी होती लड़की और मातृत्व की उलझी छवियां" पढ़ने के बाद मेरी भी स्थिति वैसी ही थी जैसी आपकी "'औरत के हक में" पढ़ने के बाद थी. मुझे आपमें खुद के लिए एक मार्गदर्शक की छवि नजर आ रही है. लेकिन मैं यह देखकर निराश हुआ की आपने २५ फरवरी के बाद से अपने ब्लाग पर कुछ नहीं लिखा है. मेरा निवेदन है की आप इसे जारी रखे ताकि हम जैसे एक्लव्यो का मार्ग दर्शन हो सके.
मनीषा जी मैं यह भी जानना चाहूँगा कि यायावर के फीड बैक का आपने इतनी आक्रामकता से क्यों जवाब दिया? "पतनशीलता’ क्या कोई मूल्य है" आर्टिकल में आपने सेकेंड लास्ट पैरा में कहा है "कोई स्त्री भी उतनी ही मुक्त होती है, जितना मुक्त वह समाज हो, जिसमें वह रहती है। मेरी मुक्ति का स्पेस उतना ही है, जितना मेरे जीवन का भौतिक, वर्गीय परिवेश मुझे प्रदान करता है।" मुझे लगता है आप अपनी आजादी के लिए स्पेस खुद बनाती होंगी. फिर वर्गीय परिवेश की मजबूरी क्यों?
मैं समझ सकता हूँ फीचर एडिटर जैसे महत्त्वपूर्ण पद को सँभालते हुए आपको समय भी कम ही मिलता होगा. मगर मेरे क्यूं के जवाब मुझे मिलेंगे तो मुझे खुद को विकसित करने में काफी मदद मिलेगी. इसके अलावा मेरा ब्लाग www.warriorofpen.blogspot.com है जिसे मैंने आपका ब्लाग पढ़ने के बाद बनाया है. अगर आप अपने व्यस्त समय में से कुछ समय निकाल कर मेरे एकमात्र लेख को पढ़ कर मेरी गलतियों को बताने की कृपा करे तो मेरे लिए बेहतरीन होगा.
चन्दन श्रीवास्तव.
padhna chahta tha lekin kho jane ka darr tha
मनीषा जी नमस्कार
आज आपका ब्लॉग पढा। लिखना चाहिए कि पढा ही नहीं उसे अनुभव किया। अपनी अनुभूति के एहसास को आपने जिस तरह से शब्दों के मोतियों में पिरोया है, काबिलेतारीफ है।
आपका परिचय पढकर एक अपनेपन का एहसास हुआ शायद इसलिए क्योंकि मेरी शिक्षा भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई है पर फिर लगा नहीं शायद इसलिए क्योंकि आप आज भी अपनी ज़मीन को पहचानती हैं।
मनीषा जी आपने बहुत सुन्दर लिखा है और आपकी अनुभूति इसे और भी सुन्दर बना देती है।
apki sari posts me lekhan shaili prabhavit karti hai par blog ke ankdo se lagta hai ap kafi samay se is dunia se door hain... koi naya post dekhne me nahi aya..
कहीं भीतर तक भिगोते हैं ये शब्द.
bahut achhi kavita.........
कुछ लिखिये भी ?
यह चुप्पी अब लंबी होती दिख रही है !
मनीषा जी
ज़िंदगी को दार्शनिक विज़न से यूँ ही देखा जाता है
आपकी ये बात ही कई संदेश देने में सक्षम है
"ये कविता एक कहानी का हिस्सा थी।
कहानी अधूरी रह गई और कविता भी।
इस कविता को पूरा नहीं करना चाहती।"
मनीषा अब लौट आओ, पूरी तैयारी के साथ. इसे बड़े भाई का आदेश समझो!.
namastay ,
koyee nayee rachna ku nahee likh rahee hay aap ..!
manish
सुंदर कविता। लेकिन उसके बाद की चुप्पी काफी लंबी खिंच गई है, लौट आइए मोहतरमा।
bohut achci hai!!
"...जैसे बर्फबारी के बाद की पहली धूप हो,...".
Dekhi hai ya sirf khyal hai?
will send u a photo for this line.
parvez
Aap ki kavitaye ek nadi ki tarah hai
jisame bahene ka man karta hai..
http://dev-poetry.blogspot.com/
kavita bahut achhi hai aap apni a dhuri kahani ke bare mai bhi batayen
mainsha ji,
U write so well as i can see on the blog. Mai bhi aapki biradari
ki hi hoon. Blog padhte hue laga
koi anjani si saheli se mulakat ho gai ho.bahut sundar...
read this poetry...nice.
amitabh budholiya'farogh'
www.gidhh.blogspot.com
manisha, bahut achchi kavita hai, aage bhi post karti rahiye!!
आपने तो कमाल का लिखा है, अधूरा ही अच्छा है। ...लेकिन लिखती रहिए ना। इतना गैप ठीक नहीं।
Aaj pahli baar aapke blog par aaya hoon , pad kar bahut accha laga.
tumhara hona ,ek marmik kavita hai aur man ko choo leti hai , aapne itna accha likha , bahut khushi hui., specially ye lines :
जैसे भीड़ में मुझे कसकर थामे हो एक हथेली
bahut bahut badhai .
main bhi poems likhta hoon , kabhi mere blog par bhi aayiye.
my Blog : http://poemsofvijay.blogspot.com
regards
vijay
ye kuch aisa bhi to hai......
lambhi bhhuk ke baad pahla niwala....
jalti raan par pahla chhla....
ya kaapte hotho ko ek shabd ka sahara....
hai na?
Aparna
kuch maino pehle ravish kumar ke hindustan mein chhape lekh per aapke blog ke bare mein padha tha... pichhle dino dainik bhaskar mein ek lekh k niche aapka naam padha aur fir blog khoja...
kavita aapne bahut bhavpurn likhi hai... apne kriti ko adhura bataya hai par vo purn hai...
aapka doosra lekh bhi padha... aapne likha hai ko gaaon mein auraton ki zindagi khaufnaak lagti hai per shaharon mein bhi unki zindagi suhani dhoop mein nahi dikhayi deti... shaharon mein bhi mahilaon ka sangarsh kuch alag tarah se jaari hai...
chandrabhusan ki ek kavitaa yaad ayee
ADHURI PREMKATHAYEIN..
aur uskaa ek bhatktaa bimb to sab mein payaa jataa hai..
khatarnaak hai..!
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर,
जैसे भीड़ में मुझे कसकर थामे हो एक हथेली...... बेहतरीन
एक ही शब्द कहूँगा "लाजवाब"मगर वो भी बहुत-बहुत-बहुत.........!!सच.........!!
maine kavita bhi padhi h. prayas achha h. mai pahli bar aap ke blog par aaya hu. aap ki feminist perspective ki writing me sense h.mujhe achhi lagi.aayinda aap ne kuchh likha to zere bahash pesh hone ki koshish karunga
bahut sundar kavita hai.
mam pyar karne wale akele hi hote hai khair bahut badhiya
आपके बारे मे दोस्तो से बहुत सुना था…आज ब्लाग देखा और लगा कम सुना था।
मन की भावनाओं को बहुत ही सलीके से बयां किया है आपने, बधाई।
बेहद मासूम कविता कही है आपने।
बहुत खूब कहा है। यहाँ भी नजरें इनायत करें।
पल भर
sunder kavita ka adbhut anand,badhai aur dhanyavaad dono.
dr.bhoopendra
Hey,
I can feel your feelings...
मैडम जी,
आपको अपना प्रोफाइल अपडेट कर लेना चाहिए। मेरे ख्याल से बीते एक साल से भी ज्यादा अर्से से आप इंदौर नहीं, भोपाल में हैं....:)
shabdviheen ,
dukh hai ki kaafi arse se aapne kuch kiha nhi,likheye zaroor likheye,
bhut bhut acha
आपकी कविता खूबसूरत है.और लिखिए ..प्रतीक्षा है..
www.rajeshwarvashistha.blogspot.com
Is shama ko jalaay rakhen.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
kya wakai ye aapki kavita hai ,hmne ise kahin aur padha hai
एशियाटिक की सूनसान सड़क से गुजरते
जल्दबाजी में लिया गया एक चुंबन हो
itni waah waahi li jaa rahi hai ,kaafi samay pahley padhi hui ,but i can remember that this was any foreign writer not u ,please clarify it
Neelam ji, kavita meri hi hai kisi foreign writer ki nahi. Bilkul original. Images bhi kisi aur ke nahi meri hi zandagi ke hai. Ab kisi aur ne bhi Asiatic ki soonsan sadak se gujarte vaisa kuch mahsoos kiya ho to pata nahi..... Filhal kavita meri hi hai. Bilkul maulik... Aapko kuch shanka ho to foreign kavita mujhe bhi padhvayen...
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