ये कई साल पहले की बात है। दो लड़कियां थीं। एक ब्वॉयफ्रेंड वाली, एक मेट्रीमोनियल वाली।
ब्वॉयफ्रेंड वाली लड़की 24 साल की थी और मेट्रीमोनियल वाली 34 की। दोनों मजबूत दिमागों और फैसलों वाली लड़कियां थीं। दोनों अकेले रहती और अपने पैसे कमाती थीं। दोनों प्यार से भरी हुई थीं। फर्क सिर्फ इतना था कि एक प्यार में थी और दूसरी होना चाहती थी। मेट्रीमोनियल वाली लड़की भी 24 साल की उम्र में ब्वायफ्रेंड वाली लड़की हुआ करती थी। 27 में भी और 30 में भी। अब नहीं थी। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन में प्रेम में पड़ी हुई लड़की से बदलकर वो मेट्रीमोनियल में पड़ी हुई लड़की हो जाएगी। लेकिन वक्त के साथ जिंदगी कई ऐसी करवटों में घूमी कि जिस करवट सोने-उठने का न उसे अंदाजा था, न आदत। आदत पड़ते-पड़ते पड़ गई।
ब्वॉयफ्रेंड वाली लड़की मेट्रीमोनियल वाली लड़की को इस तरह जानती थी कि उसका ब्वॉयफ्रेंड मेट्रीमोनियल वाली लड़की के दफ्तर में ही काम करता था। दफ्तर में सब आदमी थे और वो अकेली औरत। आदमी उसके थोड़े से उदास मुंहासों वाले चेहरे को रूमाल से ढंककर उसके साथ सोने की योजनाएं बनाते। गंभीर संवादों में कभी-कभी उससे गुजारिश करते कि अब आपको शादी कर लेनी चाहिए। उनके लिए अब तक वो मुंहासों वाली लड़की थी, मेट्रीमोनियल वाली नहीं। जांबाज कुलीग उससे मेट्रीमोनियल देने की बात करते। लड़की अनुसना करती, फिर गर्व से सिर उठाकर इनकार कर देती। नहीं। इस तरह की शादी में मेरा यकीन नहीं।
फिर एक दिन जांबाज कुलीग्स पर एक राज जाहिर हुआ। उनमें से किसी ने मेट्रीमोनियल के किसी विज्ञापन में मुंहासों वाली लड़की का नाम और तस्वीर देख ली। खबर जंगल में आग की तरह दफ्तर में फैल गई। जांबाज कुलीग्स ने उस दिन फिर कहा। आप अपना मेट्रीमोनयल दे दीजिए। लड़की ने फिर सुनकर अनुसना किया। शालीनता से इनकार का नाटक किया। जांबाज कुलीग मन-ही-मन हंसे। झूठी लड़की। दिया तो है, बोलती क्यों नहीं।
ब्वॉयफ्रेंड वाली लड़की को एक दिन उसके ब्वॉयफ्रेंड ने विचारधारा के सबसे ऊंचे शिखर पर बैठकर बड़ी हिकारत से मेट्रीमोनियल वाली झूठी लड़की की कहानी सुनाई।
ब्वॉयफ्रेंड वाली लड़की डर गई, कहानी सुनाने के अंदाज से।
उसे मेट्रीमोनियल वाली लड़की पर प्यार आया। उसने सोचा, इस वक्त वो कहां होगी। क्या कर रही होगी। क्या मेट्रीमानियल से कोई मिला होगा सचमुच।
लड़का हंस रहा था, कुढ़ रहा था, लड़की के झूठ पर।
"मेट्रीमोनियल दिया तो इसमें दिक्कत क्या है। अजीब क्या है।"
"दिक्कत मेट्रीमोनियल में नहीं है। दिक्कत झूठ में है। दिखाती तो ऐसे थी, जैसे पारंपरिक शादी में उसका कोई यकीन नहीं। उसने झूठ क्यों बोला।"
"वो तुमसे सच क्यों बोलती। कौन थे तुम उसके। कुलीग से कोई क्यों बोलेगा सच।"
"क्यों नहीं बोलना चाहिए सच।"
"तुम जाकर ऑफिस में ये सच बोलते हो क्या कि सोते हो मेरे साथ।"
"वो अलग बात है।"
फिर सत्य, विचारधारा और छाती ठोंककर हमेशा सच बोले जाने पर एक लंबा भाषण हुआ।
ब्वॉयफ्रेंड वाली लड़की मेट्रीमोनियल वाली लड़की से कभी मिली नहीं थी। सिर्फ नाम से जानती थी।
ब्वॉयफ्रेंड वाली लड़की उस दिन बहुत उदास हो गई। पहली बार उसे लगा कि उसने गलत लड़का चुन लिया है। आखिर उसको क्यों जानना चाहिए था कि उस लड़की ने मेट्रीमोनियल दिया या नहीं। या अपनी शादी का वो क्या कर रही है। ब्वॉयफ्रेंड ने उस महानगर में मेट्रीमोनियल वाली लड़की के दुख और अकेलेपन को जानने की कभी कोशिश नहीं की होगी। बुखार वाली तपती अकेली रातों के बारे में भी नहीं। बिना चुंबनों के काटी सैकड़ों रातों के बारे में भी नहीं। वकत के साथ मुरझाती उम्मीद के बारे में भी नहीं। उसका बचपन, उसका जीवन, उसका, अतीत, आंखों के काले घेरे, माथे पर फैलती झुर्रियां कुछ भी जांबाज कुलीगों के चिंता के सवाल नहीं थे। उन्हें चिंता सिर्फ इस बात की थी कि मेट्रीमोनियल देने के बावजूद छिपाया क्यों। मेट्रीमोनियल वाली झूठी लड़की।
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ब्वॉयफ्रेंड वाली लड़की उस दिन देर रात तक समंदर के किनारे अकेली बैठी रही। साउथ बॉम्बे की सड़कों पर भटकती रही। उसे डर लगा कि एक दिन वो भी ब्वायफ्रेंड वाली लड़की से मेट्रीमोनियल वाली लड़की में न बदल जाए। उसने देखा अपने आपको मेट्रीमोनियल वाली लड़की में बदलते हुए। दोनों लड़कियों ने एक-दूसरे के चेहरे पहन लिए। ब्वॉयफ्रेंड वाली लड़की मेट्रीमोनियल वाली लड़की का अतीत थी। मेट्रीमोनियल वाली लड़की ब्वॉयफ्रेंड वाली लड़की का भविष्य। दोनों एकाकार हो गईं।
दोनों समंदर किनारे उस रात गले मिलकर खूब रोईं।