अभी कुछ दिन पहले हिंदी के कवि चंद्रकांत देवताले जी के किसी परिचित से मेरी मुलाकात हुई। उसने बताया कि देवताले जी से उसने मेरे बारे में काफी कुछ सुन रखा है और बातचीत के दौरान ही उसने एकदम से पूछ लिया, ‘जब वो वेबदुनिया में आपसे मिलने आए थे तो आपने उन्हें सबके सामने हग किया था न?’
‘तुम्हें कैसे मालूम? वेबदुनिया वालों ने तुम्हें ये भी बता दिया?’
‘नहीं, देवताले जी ने बताया। कह रहे थे कि ऑफिस में ढेर सारे लोग थे और सबके सामने ही आप दौड़कर आईं और उन्हें गले लगा लिया।’
‘हां, वो हैं ही इतने प्यारे। इतने अच्छे इंसान कि कैसे कोई उन्हें गले से न लगाए।’
ये तकरीबन तीन साल पुरानी बात है। तब मैं वेबदुनिया में थी। देवताले जी इंदौर आए थे। उन्हें पता चला कि मैं वेबदुनिया में हूं तो मिलने चले आए। मुझे उनके इस तरह आने से इतनी खुशी हुई कि मैं तेजी से उनके पास गई और खुशी से भरकर उन्हें गले से लगा लिया। उन्होंने ने भी बिटिया कैसी हो, कहते हुए ढेर सा लाड़ उड़ेला।
लेकिन चूंकि मैं हमेशा ही, जिसे भी दिल से पसंद करती हूं, गले मिलकर ही मिलने की खुशी और गर्मजोशी जताती हूं तो मुझे एहसास तक नहीं हुआ कि मैंने हिंदुस्तान के हिंदी प्रदेशों की स्नेह को अभिव्यक्त करने की सीमाओं के हिसाब से कोई बड़ा काम कर डाला है, इतना बड़ा कि लोगों ने साढ़े तीन साल गुजरने के बाद भी उसे याद रखा हुआ है।
देवताले जी की उम्र 75 के आसपास होगी। उन्हें जानने वाला कोई व्यक्ति, अगर बहुत काईयां टाइप नहीं हुआ तो उन्हें पसंद किए बगैर नहीं रह सकता। लेकिन क्या लोग आगे बढ़कर उनसे कभी कहते हैं कि वो उनसे कितना प्यार करते हैं। 75 साल के उस बूढ़े को क्या कभी भी कोई गले लगाकर ये कहता है कि मैं आपसे बहुत प्यार करता हूं या कि करती हूं।
क्या हमारे देश में कोई भी किसी को गले लगाकर अपना प्यार जताता है।
क्या हम अपने आसपास कभी भी किसी को गले लगाकर कहते हैं, ‘Listen My Friend, I love you.’
किसी की बुराई करने, पीठ पीछे टेढ़ा बोलने, मेढ़क जैसे कैरेक्टर का डिसेक्शन करने में तो हम ढाई दफे भी नहीं सोचते। ऑफिस में हमेशा देखती हूं कि दो लोग मिलकर किसी तीसरे की लानत-मलामत करते गालियों के पहाड़ खड़े करते रहते हैं। फलां ऐसा और ढंका ऐसा। अकेले वही महानता के बुर्ज पर सुशोभित हैं, बाकी तो कीचड़ में लिथड़े जोकर कुमार हैं।
सबकुछ कह डालते हैं पर कभी किसी से ये नहीं कहते कि तुम कितने अच्छे हो या कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं।
प्यार शब्द को हमने गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड या पति-पत्नी के लिए रिजर्व रखा हुआ है। (ये बात अलग है कि वो भी एक-दूसरे को I love you कहने की जरूरत कभी महसूस नहीं करते।) बाकी लोग एक-दूसरे से प्यार नहीं करते। इंसानों ने अपनी दुनिया में एक-दूसरे तक अपनी-अपनी बातों की आवाजाही के लिए जो खिड़कियां बनाई हैं, उसमें प्यार का कोई ईंटा, गारा, सरिया नहीं लगा है। हमारी भाषा भी प्रेम के शब्दों को जोड़कर नहीं तैयार की गई है, जबकि मनुष्य इस दुनिया में प्रेम की भाषा के साथ ही पैदा होता है। कोई सिखाता नहीं, लेकिन एक दिन का बच्चा भी प्रेम और स्पर्श की भाषा समझता है।
ये बात पहली बार मुझे उस दिन समझ में आई थी, जब मेरी एक कजिन की बिटिया ने अपनी नन्ही-नन्ही हथेलियां बढ़ाकर मेरे स्नेह को थाम लिया था। वो उस समय महज दो महीने की थी और बिस्तर पर लेटी-लेटी पूरी ताकत से हाथ-पैर फेंक रही थी। अचानक मैं उसके ऊपर झुकी और उसके माथे को चूम लिया। फिर उसके गालों की पप्पी ली और फिर होंठों को बहुत लाड़ से चूमा।
‘मेरी नन्ही कली, मेरी शोना, मेरी चांद।’
मुझे कल्पना तक नहीं थी कि इस पर उस नन्हे से फूल की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है। अचानक मैंने महसूस किया कि उसने हाथ-पैर चलाना बंद कर दिया है। वो शांत हो गई और अपने तरीके से मेरे स्नेह में साझीदार हो गई। मैं महसूस कर सकती थी कि वो दो महीने की बच्ची मेरे चूमे जाने के साथ बराबरी से शामिल थी। वो अपने होंठों से मुझे भी चूमकर मेरे प्रेम का जवाब दे रही थी। वो क्षण मेरे लिए एक नए अलौकिक संसार के दरवाजे खुलने की तरह था। अब वो तीन साल की है और अब भी प्रेम की भाषा समझती है और प्रेम की साझेदारी में पीछे नहीं हटती, बल्कि खुद आगे बढ़कर हाथ थाम लेती है। घर में सबको बहुत अच्छा लगता है क्योंकि वह सिर्फ तीन साल की है। बड़ी होकर भी इतने ही प्रेम से भरी रही तो घरवालों समेत दुनिया वालों को मियादी बुखार जकड़ लेगा। लेकिन जैसे घर में वह पैदा हुई है, बहुत मुमकिन है कि मेरी उम्र तक आते-आते वैसी रह ही न जाए, जैसी जन्म के दो महीने बाद थी। दुनिया उसे वैसा बना दे, जैसा दुनिया को लगता है कि लोगों को और खासकर लड़कियों को तो जरूर ही होना चाहिए।
प्रेम की भाषा क्या इतनी शर्मनाक है? किसी को गले से लगाते ही क्या आप उदात्त मनुष्य की ऊंचाई से लुढ़ककर सीधे जमीन पर आ पड़ते हैं। क्या, प्रॉब्लम क्या है? प्रेम इतना अछूत है क्या? अपनी बनाई दुनिया के लिए क्या हमें कभी भी शर्म महसूस होती है। मेरे भाई के घर में जो डॉगी है, वो भी अपना प्यार एक्सप्रेस करने से पहले ढा़ई घंटे विचार नहीं करता कि हाय, कहीं ये अनैतिक तो नहीं। घर में घुसते ही मेरे ऊपर चढ़ने, चाटने लगता है। मेरी हथेलियों को अपने मुंह से पकड़ेगा, आगे के दोनों पैर रखकर मेरे ऊपर चढ़ जाएगा और मुंह चाटेगा। पैरों के पास बैठकर पैर चाट-चाटकर खुश होगा और बड़े प्यार से मेरी ओर देखेगा कि अब तो मेरी पीठ थपथपाओ, मुझे प्यार करो। न करूं तो बच्चों जैसे नाराज भी हो जाएगा।
मुंबई के हॉस्टल में एक बिल्ली रहती थी। वो भी रोज शाम को मेरे ऑफिस से लौटने का इंतजार करती थी और आते ही गोदी में चढ़कर बैठ जाती, हाथ-पैर चाटती। उसके मन भी बड़ा प्यार था, जिसे जताने से पहले न वो उनके नैतिक-अनैतिक पहलुओं पर विचार करती थी और न ही संकोच से गड़ जाती थी। मेरे ऑफिस जाने से पहले और लौटने के बाद उसे लाड़ करना ही करना होता था।
बच्चों को भी लाड़ करना ही करना होता है। उन्हें प्यार करना आता है, लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं, प्यार की भाषा शर्म का सबब हो जाती है। वो गाली-गुच्चा, मारपीट, हर भाषा के साथ कंफर्टेबल होते जाते हैं, पर प्यार की बात नहीं करते।
मैं संसार की भाषा को शर्मनाक और त्याज्य समझती हूं। आपने ऐसी दुनिया बनाई है कि जिसके लिए आपको शर्म से डूब जाना चाहिए। मैं अपनी भाषा खुद रच रही हूं। हर उस बंधन को गटर में झोंकते हुए, जिसे आपने मोर मुकुट की तरह मेरे माथे पर सजाने की हमेशा कोशिश की है। मैं अपनी भाषा हवा से सीखती हूं, जो मौका मिलते ही आकर मेरे गालों पर बैठ जाती है और मेरे बाल हिलाने लगती है। उन फूलों से, जो मोहब्बत से भरकर झुक जाते हैं। उस पहाड़ी नदी से, जो अपनी राह में आने वाले हर खुरदरी चट्टान को प्रेम के स्पर्शों से मुलायम कर देती है।
अब मैं पापा के पैर नहीं छूती। उन्हें गले लगाकर कहती हूं, Papa, I Love you। वो बड़े प्यार से मुझे देखकर मुस्कुराते हैं पर कभी भी जवाब में ये नहीं कहते, I Love you too बेटा। हालांकि वो अपने समय और समाज के हिसाब से बहुत ज्यादा रौशनख्याल हैं, लेकिन फिर भी तमाम बंधन बचे रह गए हैं। मैं साठ साल की उम्र में अब उन्हें बदल नहीं सकती। मां को भी गले लगाकर I Love you बोलती हूं और मां का जवाब होता है, I love you too बेटा।
मुझे याद नहीं कि कब मैं इतनी बड़ी हो गई कि पापा ने मुझे गले लगाना या लाड़ करना छोड़ दिया था, पर बड़े होने के बाद मैंने उस सीमा को तोड़ा। क्योंकि मुझे उनका हाथ पकड़ने की जरूरत थी और मुझे जो जरूरत होती है, मैं कर डालती हूं। ज्यादा सोचती नहीं।
बहुत साल पहले, जब मैं मुंबई जा रही थी, इलाहाबाद स्टेशन पर हावड़ा-मुंबई मेल छूटने से कुछ सेकेंड पहले, जब मैं टेन में थी और पापा प्लेटफॉर्म पर खड़े थे, मैंने खिड़की की सलाखों पर रखे पापा के हाथ को चूमकर कहा था, Papa I love you. पापा की वो आंखें आज भी मेरे जेहन में ताजा हैं। बिलकुल भर आई थीं और उनमें मेरे लिए ढेर सारा प्यार था। पापा कितने खुश होते हैं, इस बात से कि जो सीमाएं वो नही तोड़ पाए, मैं तोड़ देती हूं और इस तरह मैं खुद उनकी भी मदद कर रही होती हूं।
मैं सचमुच हर वो दुष्ट सीमा तोड़ देना चाहती हूं, जो मुझे कमतर इंसान बनाती है। मैं हमारे घर के डॉगी और हॉस्टल वाली बिल्ली की तरह होना चाहती हूं। बिलकुल सहज, वैसी जैसा प्रकृति ने मुझे रचा है। मैं चाहती हूं कि मेरी दीदी की बिटिया कभी न बदले और जब वो मेरी उम्र की हो और मैं 62 साल की बूढ़ी तो मुझे 32 साल पहले की तरह चूमकर कहे, मौसी, I Love you. वैसे भी 62 साल की बूढ़ी औरत को कौन प्यार से चूमने में इंटरेस्ट दिखाएगा।
मैं हर उस व्यक्ति से अपने मन की बात कहना चाहती हूं, जिससे मैं सचमुच प्यार करती हूं। मैं पापा को गले लगाकर कहना चाहती हूं, Papa, I love you. प्रणय दादा को बोलना चाहती हूं, Dada, I truly love you. रस्किन बॉन्ड से कभी मिलूं तो कहूंगी, Mr. Bond, see how much we all love you. Specially I love you. मैं निशा दीदी को कहना चाहती हूं, दीदी तुम बहुत प्यारी हो और मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं। अपने नानाजी को कहना चाहती हूं, नानू, आपसे मेरे विचार नहीं मिलते, लेकिन मैं आपसे बहुत प्यार करती हूं। रिंकू भईया को बोलना चाहती हूं, तुम्हारे जैसा भाई कोई नहीं। भईया, I love you. मैं शायदा, अभय, प्रमोद, अशोक, तनु दीदी, शुभ्रा दीदी, भूमिका, दादू, अवधेश, अनिल जी, ललित, मेरी बहन, अभिषेक, गोलू और अपने उन तमाम दोस्तों को, जितने मैं बहुत प्यार करती हूं, कहना चाहती हूं, 'नालायकों, Listen, I Love you.'
ये प्यार जताना मुझे इंसान बनाता है और मैं इंसान बनी रहना चाहती हूं।
PS : ये नालायक शब्द अभय, प्रमोद, अशोक, दादू और अनिल जी के लिए नहीं है। बाकी सब are truly नालायक।