बोरियत जैसे कोई सबसे खूबसूरत रेशमी साड़ी थी, जिसे आपस में बांटकर बारी-बारी से लड़कियां पहना करती थीं। दिन अच्छे गुजरते रहते, फिर एकाएक बोरियत का दौरा पड़ जाता। मन नहीं लगता इस जहां में मेरा। हाय ये बोरियत।
बोरियत के ये दौरे सांवली, कमजोर, साधारण नैन-नक्श और मामूली तंख्वाहों वाली लड़कियों पर नहीं आते थे। मैंने कभी फहमीदा, येलम्मा या प्रभा को बोरियत का गाना गाते नहीं देखा था। ये गाना ज्यादातर वो लड़कियां गाती थीं, जिनके वीकेंड उनके ताजातरीन ब्वॉयफ्रेंड के साथ बैंड स्टैंड और मरीन ड्राइव पर बीता करते थे। जिनके परफ्यूम तो क्या, जूते-चप्पल तक खुशबू मारते थे। ये गाना मैं भी गाती थी कभी-कभी, पर मेरा सुर इतना सधा हुआ नहीं था। डेजरे डायस तो जब देखो तक तानपूरा उठाए बोरियत राग का आलाप लेती नजर आतीं।
सुबह बोरियत का आलाप चल रहा होता। शाम तक मरीन ड्राइव की एक सैर और AXE का नया डियो। बोरियत दूर भाग जाती। लेकिन कब तक के लिए। दो दिन बाद डियो पुराना पड़ जाता और फिर वही जानलेवा बोरियत। फिर एक नई सैंडिल से जीवन में कुछ दिन नयापन रहता और फिर वही डिप्रेसिंग बोरियत। लिप्सटिक के किसी नए शेड में कुछ ज्यादा समय तक बोरियत को दूर रखने की कूवत होती थी। नई ब्रांडेड जींस या टी-शर्ट में लिप्स्टिक के बराबर या उससे कुछ मामूली-सी ज्यादा।
और भी कुछ चीजें बोरियत भगातीं और जिंदगी में नयापन लातीं, जैसेकि कोई नई हेयर-स्टाइल, एकाध किलो वजन कम होना, जींस की नई स्टाइलिश बेल्ट, ऑक्सीडाइज्ड या कॉपर ज्वेलरी, कोलाबा या कफ परेड में घूमते-शॉपिंग करते बिताई गई कोई शाम, ब्वॉयफ्रेंड का एक किस, लिबर्टी या मेट्रो में कोई नई रोमांटिक फिल्म, शाहरुख खान का नया लुक या ‘कल हो ना हो' में प्रीती जिंटा के अमेजिंग आउटफिट्स वगैरह।
मुझे याद है, एक दिन डिनर के बाद सभी टीवी रुम में बैठे बोर होने की शिकायत कर रहे थे। तभी ‘इट्स द टाइम टू डिस्को' टीवी में आने पर अचानक बातचीत का रुख प्रीती जिंटा के वेस्टर्न आउटफिट्स की ओर मुड़ गया। देबाश्री और डेजरे की आंखें उत्साह से चमकने लगीं। सभी लड़कियां अपने समय के उस बेहद जरूरी कन्वर्सेशन में अपना योगदान देने के लिए मचलने लगी थीं।
ऐसी तमाम बातें कुछ देर के लिए बोरियत भगातीं, जीवन में नएपन की बहार लातीं, लेकिन फिर वही मुई बोरियत।
मैंने इतने बड़े पैमाने पर फैली हुई इस बीमारी पर कुछ गहन विचार करना चाहा। मुझे लगा, शायद इस उम्र में ऐसा होता ही होगा। मे बी सम हॉर्मोनल चेंजेज....... हो सकता है, 18 से 23 की उम्र में दादी को भी इतनी ही बोरियत होती रही हो और मम्मी को भी। मैंने एक बार मां से अपनी इस समस्या का समाधान भी चाहा। बात उनकी समझ में नहीं आई। कैसी बोरियत, काहे की बोरियत, कहकर बड़बड़ाती हुई वो अपने काम में लग गईं।
फिलहाल बोरियत का बैक्टीरिया हमारी जिंदगी में बदस्तूर बना हुआ था। लिप्स्टिक से लेकर शाहरुख खान तक किसी में बोरियत को स्थाई रूप से दूर करने की ताकत नहीं थी। बोरियत कभी-कभी बेसाख्ता बढ़ जाती। कभी किसी लड़की का अपने ब्वॉयफ्रेंड से झगड़ा हो जाता या किसी ने अपने ब्वॉयफ्रेंड को किसी और लड़की के साथ देख लिया होता। उसके बाद 'जीवन क्या है' और 'प्रेम क्या है' जैसे गंभीर सवालों पर चिंतन-मनन होता। बड़े दार्शनिक लहजे में लड़कियां लड़कों के फरेबी चरित्र और प्रेम की निस्सारता के बारे में बात करतीं और सूं-सूं करती नाक बहाती रोतीं। दूसरी लड़की, जो शाम तक पैडीक्योर करवाने की वजह से काफी प्रसन्न होती थी, अचानक भावुक हो उठती। 'लड़के तो ऐसे ही होते हैं, घमंडी, धोखेबाज। डू नॉट क्राय बेबी, आय अंडरस्टैंड.....।'
दिल टूटते और फिर जुड़ जाते। प्यार के तमाम दार्शनिक किस्से बार-बार दोहराए जाते। फिर शाम को आई लाइनर लगाकर लड़कियां मैचिंग पर्स झुलाती नए साथी के साथ सैर पर जातीं और फैशन स्ट्रीट से 500 की जींस 200 में लेकर लौटतीं।
एक के साथ ब्रेक-अप होने पर लड़कियां बड़ी बेचैनी से किसी नए ब्वॉयफ्रेंड की तलाश करती थीं। एक बार सॉल्ट लेक, कोलकाता से एक लड़की आई - पिया घोष। वो तो हर समय गाय की सींगों की तरह सिर पर बोरियत की ताज सजाए चलती थी और हमेशा मुझसे कहती, 'लाइफ इज सो बोरिंग। तुम्हारे ऑफिस में कोई लड़का नहीं है, मुझसे मिलवा दो ना।'
एक अदद ब्वॉयफ्रेंड पाने के लिए उसकी बेचैनी की कोई सीमा नहीं थी। ये सारी चीजें मेरे लिए इतनी नई और विचित्र थीं कि मैं बात-बात पर नए पैदा हुए बच्चे की तरह मुंह में उंगली दबाए आश्चर्य से हाय-हाय करती थी।
इलाहाबाद में तो शादीशुदा लड़कियां भी प्रेम का ऐसे खुल्ला गाना नहीं गातीं, जैसी बेहया ये बड़े शहरों की लड़कियां हैं। मैं तो इसकी सखी-सहेली भी नहीं कि कहती है कोई ब्वॉयफ्रेंड दिलवा दो। जैसे चार रु. पाव तोरई है, जो बाजार से दिलवा दूं।
16 comments:
आपकी लेखन शैली बहुत दिलचस्प है।
समाज के एक धीरे-धीरे बड़े होते हिस्से की कड़वी सच्चाई पेश की आपने.
बोरियत के किस्से बड़े अच्छे लगे।
१.वो तो हर समय गाय की सींगों की तरह सिर पर बोरियत की ताज सजाए चलती थी।
२.ये सारी चीजें मेरे लिए इतनी नई और विचित्र थीं कि मैं बात-बात पर नए पैदा हुए बच्चे की तरह मुंह में उंगली दबाए आश्चर्य से हाय-हाय करती थी।
३.मैं तो इसकी सखी-सहेली भी नहीं कि कहती है कोई ब्वॉयफ्रेंड दिलवा दो। जैसे चार रु. पाव तोरई है, जो बाजार से दिलवा दूं।
खासतौर पर अच्छे लगे। :)
अनूप शुक्ला
बढिया लिखती हैं, मनीषा जी । व्यक्ति, परिस्थितियों एवं समाज के पहलुओं की एवं भावों की जानकारी हुई । धन्यवाद ।
संजीव तिवारी
अनूप जी और संजीव जी,
आपकी टिप्पणियां सामान्य तरीके से मेरे जी-मेल अकाउंट में ही आई थीं, लेकिन वहां से पब्लिश किए जाने के बाद भी ब्लॉग पर नहीं नजर आईं। ये एक्सरसाइज कई बार दोहराए जाने के बाद भी नहीं। सो मेरे पास और कोई चारा नहीं था कि मैं आपकी टिप्णियों को अनॉनिमस वाले खाते में डालकर आपके नाम से प्रकाशित करती। जी-मेल अकाउंट और ब्लॉग का कोई घनचक्कर है, जो मेरी समझ से परे है।
गर्ल्स हॉस्टल में किस्सा-ए-बोरियत अच्छा लगा!!
वैसे आपकी ये दास्तान-ए-गर्ल्स हॉस्टल अच्छा ही लगता आ रहा है। मोहल्ले पर हुई शुरुआत से ही, कुछ तो आपके लिखने की शैली के कारण और कुछ तो इन संस्मरणों के रोचक होने के कारण और शायद सबसे बड़ा कारण खुद का एक लड़का होना और गर्ल्स हॉस्टल के अंदर की लाईफ़ को जानने की उत्कंठा होना है!!
रोचक प्रसंग और उससे कहीं ज्यादा रोचक वर्णन। क्या बात है, मनीषा जी आपकी कलम में। हॉस्टल की जिंदगी का आपने बढिया वर्णन किया है।
अंतरा
aap ko yad hai maine ek bar kaha tha aap ki kissagoi kamaal ki hai.
ab doosaron ki pratikriyayen dekh kar lagta hai, main kaafi sahee tha.
Maine ek bar avinashji se bhi kahaa tha ki aapko diary likhne k liye uksayen....such much bahut achha likh rahaa hain.
मनीषा जी,
आप सच में बहुत दिलचस्प ढंग से अतीत को साझा करती हैं।
सब लड़कों की तरह लड़कियों के होस्टल की बातें जानना मुझे भी दरवाजे की दरारों में से झाँकने की तरह बहुत अच्छा लगा।
आपकी कलम में जादू है
आपको पात्रो के सही नाम लेते हुए डर नही लगता..स्पेशली जब आप उनकी पर्ते खोल रही हो.. :P
kamal ki lekhan shaili hai aapki pal bhar ko bhi boriyat hone nahi deti :)
@ Pankaj - पंकज, चरित्र सब वही हैं, सिर्फ मैंउनके नाम बदल देती हूं।
@ Shikha - आपका बहुत बहुत शुक्रिया, मेरा लिखा पसंद करने के लिए।
बोरियत का वर्णन बेहतरीन तरीके से किया है मनीषा जी....शषुभकामनायें....
hey manisha good one bht purana hai par maine aaj pada..........by the way isme apne ye nahi likha k aap kabhi bore hote ho ya nahi
Charvi Sharma
hi manisha ,
nice to see you again.
vandna kukshal (classmate DPGIC)
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