Thursday, 8 October 2009

अकेला कमरा


एक उदास, थका सा कमरा

कमरे की मेज पर

किताबों का ढ़ेर

मार्खेज पर सवार

अमर्त्‍य सेन का न्‍याय का विचार

रस्किन बॉन्‍ड का अकेला कमरा

कुंदेरा का मजाक, काफ्का के पत्र

मोटरसाइकिल पर चिली के बियाबानों में भटकते

चे ग्‍वेरा की डायरी

अपने देश में अपना देश खोज रही इजाबेला

सोफी के मन में उठते सवाल

उन सवालों के जवाब

कुछ कहानियों के बिखरे Draft

टूटी-फूटी कविताएं

कुछ फुटकर विचार

और टूटे हैंडल वाला कॉफी का एक पुराना मग

पिछले साल रानीखेत में

एक दोस्‍त की खींची हिमालय की कुछ तस्‍वीरें

एक पुराना पिक्‍चर पोस्‍टकार्ड

पुरानी चिट्ठियों की एक फाइल

जो मैंने लिखीं

जो मुझे लिखी गईं

ये सब

इस एकांत कमरे के साझेदार

भीतर पसरे सन्‍नाटे में

सन्‍नाटे जैसे मौन

मेरे साथ

बाहर पत्‍थरों पर गिरती

बारिश की बूंदों की

आवाज सुन रहे हैं

23 comments:

Anonymous said...

कमरा आपने कुछ ज़्यादा ही संजीदा बना रखा है...थोड़ा सख़्त भी लेकिन बेशक ज़हानत से भरा। उसमें कोई खिड़की हो तो ज़रा खोलें. ताज़ा हवा आएगी...कभी-कभी ठहाके भी।
वैसे लफ़्ज़ों पर सवार होकर आपके कमरे की सैर ज़रूर कर ली। अद्भुत लिखा है।

कुश said...

ऐसा कमरा मिल जाए तो लात मार दू दुनिया को..

monali said...

Kuchh gehrayi h...koshish ki lkn m shayad utar nahi paayi...aapka blog achha laga...

अर्कजेश Arkjesh said...

उदास कमरा,किताबों का ढ़ेर , एकांत , सन्‍नाटे
बारिश की बूंदें ...

क्या अमीरी है ...

सागर said...

सुबह से कुछ मिस कर रहा था... तलाश तहलका और यहाँ आकर पूरी हुई... गोया ऐसी जिंदगी की कल्पना सारे साहित्यिक और ब्लोग्गेर्स करते होंगे... और जैसे जैसे उद्धरण आपने दिए उससे तो कुछ ज्यादा ही लगाव हो गया... कई नाम ऐसे हैं जिनकी कृति नहीं पढने को मिली है... सोचता हूँ फिर से जी लूँ...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सुन्दर , क्या करे, एकाकी जीवन का दर्द कुछ ऐसा ही होता है !

rajiv said...

han muje sunai padati hain barish ki boondon me khil khilahat, muje sunai padati hain udane ke liye panno se nikalti fad-fadahat, tasveeron se niharti ankhon me sundar sapno ki aahat. in udasi ki deewron se bahar niklo duniya itani buri bhi nahin

अनिल कान्त said...

ये कमरा मुझे बिल्कुल अपना सा लगा

सुशील छौक्कर said...

आपकी लेखनी में कुछ अद्भुत सा है। पोस्ट देखने के बाद रहा नही जाता पढे बगैर। पहले सोचने लगा कहीं ये कमरा जाना पहचाना सा तो नही। पर आखिए में देखा तो बारिश की बूँदे नही थी। बहुत क्लासिक सा है।

Arvind Mishra said...

इसमें देशज क्या है ? अपना क्या है ?

मनीषा पांडे said...

Kya deshaj nahi hai ? Amartya Sen, Ruskin Bond, Himalay, barish ki bunde, mez aur kitabe sabhi kuch to deshaj hai..... Aur ye seema rekha bhi to hami ne kheechi hai ki ye apna, ye paraya.... Socho to sabhi apna hai.... Che, Kafka aur isabela bhi to utani hi apne hai......

ओम आर्य said...

एक अपनी सी कविता ..........पढकर बहुत ही अच्छी लगी!

ओम आर्य said...

एक अपनी सी कविता ..........पढकर बहुत ही अच्छी लगी!

Dr. Shreesh K. Pathak said...

अरविन्द भाई की बात से इत्तेफाक रखता हूँ. इसमे अपना बस एकाकीपन ही है....

M VERMA said...

बहुत सुन्दर बहुत करीबी रचना

ravindra vyas said...

मैंने आज ही आपका ब्लॉग देखा। आप फिर से सक्रिय हैं, यह जानकर बहुत खुशी हुई। सचमुच। शुभकामनाएं।

शरद कोकास said...

अरे यह तो मेरा कमरा है ..लेकिन मेरे कमरे में इसके अलावा कुछ और भी है .. जैसे पुरानी डायरियाँ .मित्रों के ढेर सारे पत्र, खूब सारी कलम ,पत्रिकाओं की फाइलें , एक हारमोनियम ,और अब एक डेस्क्टॉप भी । इसके अलावा विनोद कुमार शुक्ल की "दीवार में एक खिड़की रहती है" की तरह एक खिड़की उस पर् कुछ खिलौने ,शंख सीपीयाँ , पर्फ्यूम की बोतलें ..और.. बस भई अब तो इस पर एक पोस्ट लिखनी ही पड़ेगी । लेकिन आपकी कविता से यह तो समझ आ गया कि आप पढ़ती खूब हैं ..इसे भी शेयर कीजिये ।

राजीव तनेजा said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...अब लगता है कि बार-बार आना होगा...

वैसे तो मुझे कविता कि ज़्यादा क्या?...कुछ भी समझ नही6 है लेकिन इतना तो जान ही लिया है कि आप पढती बहुत हैँ...

दीपक 'मशाल' said...

:) ye kamra J.N.U. ke hostels ki yaad dilata hai... achchha laga.
kabhi mere ghar(swarnimpal.blogspot.com) pe bhi tashreef layen... :)

Priyankar said...

इतनी अमीरी के बावजूद, कमरा उदास और थका कुछ ज्यादा है . शायद इसलिये अरविंद जी को देशज नहीं लगा . इस देश में तो लोग अभाव में भी इतने उदास और हताश नहीं होते .

ये उदासी के इतने वायरस आते कहां से हैं ? और इनको बुहारा क्यों नहीं जाता ? किताबों जैसा शक्तिशाली ’डिसइन्फ़ेक्टेंट’ होते हुए भी ऐसा क्यों ?

Unknown said...

Aao ki pul banaye koi apne aas-pas,
Arsa hua hai aap ko ham se kate hue!!

To asli baat hai pul banana aur aap to esme mahir hai. Phir??? Koun sa chuna-gara chahie??
Aur---
Hamne tamam umr akele safar kiya,
Ham par kisi khuda ki inayat nahi rahi.

To kaha hai apna kambakht khuda???

Puja Upadhyay said...

बारिश की बूंदों के बाद फूल खिलेंगे, उनकी खुशबू आएगी...और कमरा खिलखिला उठेगा. वो एक खुशनुमा धुप की किरनें लपेटे हुए होगा..पर उस कमरे में वो अपनापन कहाँ जो इस उदास कमरे में है.
बेहद खूबसूरत है आपका कमरा, इससे मिलकर अच्छा लगा.

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

सबसे सीखने को बहुत कुछ है..’ची’ मेरे फ़ेव है..द मोटरसाइकिल डायरीज की तरह मुझे भी एक दिन भारत भ्रमण पर जाना है..एक छोटी सी खवाहिश है..विश लिस्ट मे है..