Thursday 8 October 2009
ब्लॉगिंग के साइड इफेक्ट
प्लेटफॉर्म पर बहती नदी....... (मुझे साफ करने की कोई जरूरत नहीं
है। रात भर में बिल्ली ही साफ कर जायेगी।)
कोयला होने से पहले ही पड़ गई मेरी नजर
हे भगवान ! अब इसे साफ कौन करेगा........
खुल गई पोल !
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28 comments:
कभी कभी शोभा से भी ऐसे ही हो जाता है। हमें पता न था यह ब्लागिंग का साइड इफेक्ट है। पर वह तो ब्लागिंग करती ही नहीं है।
bilkul sahi....
aapse sahmat hoon..
देखा...ऐसा तो सबके साथ हो जाता है, अब तो फाइनल कर लो कुछ...। और वैसे भी भगौना साफ करने की टेंशन कब तक पालोगी।
अब तक तो बबली के खाना खजाना से खूबसूरत डिशेस के चित्र देखते आ रहे थे और उसे ही ब्लॉगिंग के साइड इफेक्ट समझ रहे थे । यह तो कुछ और ही है । जैसे मै जब भी दूध पकाता हूँ तो ठीक गैस के सामने खड़ा रहकर उसे पकाते हुए सोचता हूँ इसे गिरने नही दूंगा और ऐन उफान के वक्त मेरा ध्यान कही और चला जाता है बस.. फिर ऐसी ही तस्वीरे बनती है ।
इससे ख़तरनाक है साईड एफ़ेक्ट का अदृश्य होना।जब पहले ही उफ़ान से गैस की लौ बुझ जाए और गैस फैलती रहे ।
अरे क्या फाइनल कर लूं ? भगोना मजवाने के लिए शादी की लूं ? भगोने समेत अन्य बर्तन धोने के दायित्व से भी मुक्ति मिलेगी।
शादी कर लूं क्या ?
मैं भी न। आधी अधूरी बात करती हूं। शायदा ऊपर के दोनों सवाल तुम्हीं से हैं। क्या करूं, अभी तुम्हीं राह सुझाओ।
अच्छे चित्र हैं .. आपने अपनी ही पोल नहीं खोली .. शायद सभी महिला ब्लागर का यही हाल होगा !!
ओह अच्छा हुआ मैं तो श्रीमती जी को भी ब्लोग्गिंग में लाने की सोच रहा था..इस साईड इफ़्फ़ेक्ट को देख कर तो हौसला पस्त हो गया..बाप रे इत्ते काले जले हुए भगोने कैसे धुलेंगे मुझ से...वैसे जेनरल वाले तो बखूबी धो लेता हू..मगर ये..तौबा तौबा,
अरे-अरे ये क्या हो गया, सभंल के ब्लोगिंग करिए ...................
क्या से क्या हो गया?...
ऐ ब्लॉगिंग..तेरे प्यार में..
चाहा क्या?..क्या मिला तेरे प्यार में?
देखो भाई बुरा मानने की बात नहीं है, हमें ये सीन बड़ा सुंदर लगता है। थोड़ा कम जला हो तो स्वाद भी बहुत आता है। ये तो होता ही रहता है। इससे क्या घबराना। माना कि ये साइड इफैक्ट है, अफैक्ट तो नहीं।
अब कुछ मुख्य धारा वाले इफ़ेक्ट भी देखने को मिलें शायद। टेम्पलेट बदला है क्या? पहले वाला जादा भला दिखता था। :)
हो चाहे जो , ब्लॉगर ने अपनी रचनात्मकता यहाँ भी दिखा ही दी तो परिस्थितियां, ब्लॉगर को परेशां नहीं कर सकतीं,,,,मनीषा जी ने साबित कर दिया है....
हा हा हा.. अभी अभी कल सुबह की चाय के बर्तन धोये है..
चलिए ब्लॉग्गिंग का एक साइड इफ्फेक्ट यह भी मालूम चला !
अब तक तो साइड इफेक्टों की संख्या सैकड़े को छु चुकी होगी!!
फुरसतिया जी ने सही कहा यह चिट्ठाकारी तो निन्यानवे का फेर है.......और हम पड़े 99 के चक्कर में
ये सच मे ब्लोगिंग के साइड इफैक्ट्स हैं? कहीं आप ब्लोगिंग के साथ ही साथ पड़ोसन से बातें भी तो नहीं कर रही थीं? :)
माई री भगोना देख डरी ।
चाकर ल्याऊं-ब्याह रचाऊं कवन सो जतन करी ॥
छांडि़ बिचार-लेखनी अपनी मैं नहीं फोड़ूं फरी ॥
काईं करूं या जगतफंद को सोच-हि-सोच मरी ॥
मीषा के ओ! आगत-चाकर तुम हीं मेरे हरी ॥
यह तो साइड एफेक्ट नहीं हैं ब्लॉगिंग के , वाइड इफेक्ट हैं !
मजेदार प्रविष्टि ! प्रियंकर जी की टिप्पणी तो ...
मनीषा मैं तो कह रही थी कि अब कोई काम करने वाली या वाला फाइनल कर लो, बाकी अगर शादी करने पर तुल ही गई तो शुभकामनाएं।
mera to ye haal hai ki bachpan se ab tak doodh jab bhi chadhaya hai, 90% time jal hi gaya hai :D
bahot khub. kya ap hindi literature ki patrikao ki samiksha padna chati hai?
please log on kari
http://katha-chakra.blogspot.com
:D :D
मिल्क कुकर ले आईये..समस्या ख़तम..
वैसे इस बर्तनों का क्या किया?धुल सके या फेंकना पड़ा?
बहुत खूब दिखाया है ब्लोगिंग के साईड इफेक्ट
बिलकुल सालिड, बिलकुल परफेक्ट
ये भी एक अच्छी पोस्ट है ! वाह !
एक दिन अनुराग जी का फ़ेसबुक पर शेयर किया वीडियो देख रहा था...सिर्फ़ गुलज़ार चल रहे थे..तभी जलने की बू आयी तो हमारा भगॊना इससे भी अच्छी हालत मे था...पूरा फ़्लैट
जले हुए दूध की खुश्बू से महक उठा था..और सुबह मेड दीदी ने भी टीज किया..दूध चढा के कहा खो गये थे? :)
अब उन्हे कौन बताये कि वो तो कम्ब्ख्त डा अनुराग जी और गुलज़ार की मिली जुली साजिश थी..
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