Thursday, 8 October 2009
जीवन तो यूं भी चलता रहता है
जानती हूं एक दिन
तुम यूं नहीं होगे मेरी जद में
एक दिन तुम पांव उठा अपनी राह लोगे
जीवन तब भी वैसा ही होगा
जैसा तब हुआ करता था
जब तुम छूते नहीं थे मुझे
वैसे ही उगेगा सूरज
बारिश की बूंदें भिगोएंगी तुम्हारे बाल
पेड़ों के झुरमुट में
अचानक खिल उठेगा
कोई बैंगनी फूल
गोधूलि में टिमटिमाएगी दिए की एक लौ
एक प्रिय बाट जोहेगी
अपने प्रेमी के लौटने की
तारे वैसे ही गुनगुनाएंगे विरह के गीत
लोग काम से घर लौटेंगे
मैं वैसी ही होऊंगी तब भी
बस मेरी पल्कों पर तुम्हारे होंठों की
छुअन नहीं होगी
चुंबनों से नहीं भीगेंगी मेरी आंखें
एक स्मृति बची रह जाएगी
झील के किनारे की एक रात
उन रातों की याद
वरना क्या है
जीवन तो फिर भी चलता ही रहता है
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24 comments:
Gahre ahsaas.
बहुत सुन्दर!!
सच कहा-
वरना क्या है जीवन तो फिर भी चलता जाता है.
एहसास की बहुत सुन्दर कविता.
"वरना क्या है
जीवन तो फिर भी चलता ही रहता है"
एक प्रिया बाट जोहेगी
अपने प्रेमी के लौटने की
तारे वैसे ही गुनगुनाएंगे विरह के गीत
लोग काम से घर लौटेंगे
मैं वैसी ही होऊंगी तब भी..
पूरी कविता ही सुंदर है किन्तु इन पंक्तियों में शास्वत प्रेम का उदबोधन है.
मैं वैसी ही होऊंगी तब भी
बस मेरी पल्कों पर तुम्हारे होंठों की
छुअन नहीं होगी
चुंबनों से नहीं भीगेंगी मेरी आंखें
सबसे खास लगा। सुन्दर।
अच्छी कविता!
ओह, यादों से भीगा मेरा स्वयं का मन.....प्यारी रचना....बिलकुल छू लेने वाली..सच्ची..
kuch sunder ehsaas yaad ban jate hai,sunder.
एहसासों को शब्द बहुत बेहतरीन दिए हैं आपने
वाह !!
खुबसूरत! कविता बांधे रखती है
अलबत्ता इस तरह की कवितायेँ पहले भी पढ़ी हैं... फर्क इतना है की उनमें गोधूली, और बैंगनी फूल जैसे शब्द नहीं थे....
एक सुझाव भी आया था... सोचा दे दूँ... लेकिन फिर सोचा बेदखल का सुझाव हो जायेगा....
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।बधाई।
अच्छी कविता .
पर नाव में बैठते ही डूब का गीत गुनगुनाना कोई अच्छी बात है क्या ?
सच कहा....कभी इसी ख्याल पे हमने भी त्रिवेणी लिखी थी .....
"जुदा होकर ख़ुश रहना ,अजीब सा लगता है
अलबत्ता दोनो मसरूफ़ है अपनी दुनिया मे.....
हां गाहे -बगाहे याद आ जाती हो अक्सर.
Sagar ji, sujhav de hi daliye...
मनीषा बहुत अच्छा लिखा है, आगे भी ऐसा ही लिखती रहो।
एक सच को जिदंगी के शब्दों से कह दिया। बहुत बेहतरीन।
.......adbhut.aur kya ho raha hai.....? anshul(allahabad)
Are you Anshul Tripathi from Allahabad. You were with Ravikant. Am I right? Send me a mail on manishafm@gmail.com.
Kavita ka ek prabhav hota hai use khud me avtarit hote hue dekhna. Tumhari yeh kavita eise hi bhigo gai hai mujhe. Apne me eisa ras samahit ho to kaise koi pao badhakar nikal sakta hai???
Ek bhari-puri jheel sa hota hai man, ham use yaado ke sahare mapte hai. Aakhir kahi to milega thor??
Rishte ret ki manind nahi phisalte.. ve kabhi-kabhi rukte bhi hai, un thikano par jaha sukh ke ujale hai, aur hai yaado ki jhil-mil. Yeh jhil-mil hee jagati hai jeevan ki chahat.
To mabadolat Manisha ji, ese sanvarkar rakhen, Kya pata kab kambakht ki jarurat pad jaye..
एक स्मृति बची रह जाएगी
झील के किनारे की एक रात
उन रातों की याद
वरना क्या है
जीवन तो फिर भी चलता ही रहता है
क्या अभिव्यक्ति है मनिषा जी...मन के किसी कोने को पकड कर बैठ सी गई हैं ये पन्क्तियां वाह!!
What happened to the next Kavita????
वाह आज कल आप अच्छी फॉम में है मनीषा जी इसे बनाए रखि! अच्छी कविता के लिए बधाई !
After abut two months I went through your KAVITA again and my comments on it. I am amazed to read my own words. I have written such heartfelt words afer ages and I think its your KAVITA`S affect.
KAVITA can make you feel and give words to express it. Thanks a lot.
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